मंगलवार, 1 जुलाई 2014

तन्हा सा जीता हूं मैं

तन्हा-तन्हा जीता हूं मैं
तन्हा-तन्हा सोता हूं मैं
वह मेरे ख्वाबों में आती है
मेरे लबों को छू जाती है
और वह कहती है कि
सूनी राहों पर अंजाने नजर आते हैं
मुझे अपना कोई नजर नहीं आता
तन्हा-तन्हा सोता हूं मैं
तन्हा-तन्हा जीता हूं मैं
बरसों पुरानी मेरे गांव में जामुन के पेड़ की छावं में
वह चंचल सी मिली थी
आज फिर हुआ वहीं जैसे गांव पुरानी यादों की पुरवई चली है
यादे हैं पुरानी पर जोश में है नई कहानी
हमें अपनी रातो ंका ख्याल कहां आए
मेरे ख्याल गांवों में चला जाएं
सोऊ तो मेरे ख्यालों में वह आ जाए
तन्हा-तन्हा सोता हूं मैं
तन्हा-तन्हा जीता हूं मैं

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

होली आहें 







फाल्गुन की भरी दोपहरी मैं मुलुल उइ देख रहे जब निकली पिचकारी से रंगों की धारा तो उइ खटिया पर से डोली रहे वो देख कै अपनी धोती कुर्ता कै हालात उइ चिल्लाय पड़े इय बुजरउ हमरी धोती कुर्ता मैं का दाल्दिन्ही इतनन मैं लरिकवा चिल्लाय परा भागौ बाबू जी इय फाल्गुनी होली की पिचकारी आहैं