शुक्रवार, 7 मार्च 2014

होली आहें 







फाल्गुन की भरी दोपहरी मैं मुलुल उइ देख रहे जब निकली पिचकारी से रंगों की धारा तो उइ खटिया पर से डोली रहे वो देख कै अपनी धोती कुर्ता कै हालात उइ चिल्लाय पड़े इय बुजरउ हमरी धोती कुर्ता मैं का दाल्दिन्ही इतनन मैं लरिकवा चिल्लाय परा भागौ बाबू जी इय फाल्गुनी होली की पिचकारी आहैं