शनिवार, 22 अप्रैल 2017

आनंदित हो वह मधुमास में उड़ता रहा

आनंदित हो वह मधुमास में उड़ता रहा
वह परिंदा शहर-दर-शहर घुमता रहा
कुछ छोड़ा तो कुछ अपना लिया था हर शहर को
शहर छोड़ने पर वह परिंदा फड़फड़ा रहा था
लब्ज उसके कह रहे थे हर इक कहानी को
शहर छोड़ उड़ चलने की कहानी को
बस नए शहर की तलाश हर वक्त रहती है
न जाने क्यों उड़ने की बेकरारी सी रहती है