शनिवार, 28 मई 2016

आधुनिक युग की हैं ये लड़की


शार्ट जीन्स, शार्ट कुर्ती
शार्ट-शार्ट हैं ये लड़की
शार्ट प्रोफाइल, शार्ट जिंदगी
आधुनिक युग की हैं ये लड़की
हाई हील, हाई बिल
खर्चों की है इनकी लंबी लिस्ट
आधुनिक युग की हैं ये लड़की
ब्वायफ्रेंड की लंबी लिस्ट
लंबे-लंबे देती किस
आधुनिक युग की हैं ये लड़की
नीबू पानी अब न चलता
बियर के संग में चलता चखना
आधुनिक युग की हैं ये लड़की
मोबाइल बिन इनको नींद न आवे
सोशल साइट पर पिक लगावे
आधुनिक युग की हैं ये लड़की

#सुनो मेघ मेरा ये #संदेश

सुनो मेघ मेरा ये संदेश
घुमड़-घुमड़ जब आते हो
मन में कुछ हलचल कर जाते हो
कहां से आते कहां को जाते
तुम न अपना ठौर बताते
बच्चे बस चिल्लाते-चिल्लाते
देखो बदरा बस आने वाला
देखो बदरा बस आने वाला
क्षणभर में फिर जाने कहां खो
मन विचलित सा कर जाते
सुनो मेघ मेरा ये संदेश
अब से आना तो कुछ लेकर आना
अब्बा बारिश को संग में लाना
घुमड़-घुमड़कर यूं चले न जाना
ठौर ठिकाना पता बताना
जाते-जाते कुछ लेते जाने
सुनो मेघ मेरा ये संदेश

शुक्रवार, 27 मई 2016

कहते हैं लोग मुझे #अंजानी सी #किताब


कहते हैं अक्सर लोग मुझे अनजानी सी किताब
काश! कि वो इस किताब का पन्ना तो पलटते
अश्रुपूरित शब्दों में मिलते पहले उन्हीं के शब्द
काश! कि वो अगला पन्ना तो पलटते
स्वर्णों से जड़े मिलते उनके ख्वाब
काश! कि वो आगे और पढ़ते
ओझल सी निगाहें उनको कुछ धुंधली सी शब्द दिखाती
काश! कि वो पढ़ने में रुचि तो दिखाते
वो अपने को दर्पण ही अर्पण कर देते
जब वो घर से बाहर तो निकलते
काश! कि वो पढ़ते-पढ़ते खो जाते
मंजर क्या देखा होगा उन्होंने
जब मां के सामने बच्चा भूखा मर जाता है
काश! कि वो इन शब्दों की गहराई भी पढ़ते
जब जलता हो आशियां किसी का उसकी आंखों के सामने, वो बच्चा मां-मां कहकर दम तोड़ देता है
काश! कि वो पूरी ये किताब तो पढ़ते
थक जाते हम भी रुक-रुक चलकर
वो मुझको सहारा देते
हम भी मुसफिर बन उनके संग चल देते

बुधवार, 18 मई 2016

मैं और #मेरा कमरा

रात के करीब 12 बजे रहे होंगे। एक लंबी सी सरसराहट घुट अंधेरे को चीरती हुई सुनाई दी। सामने देखा तो एक दुबला-पतला सा छरहरा सा लड़का उस ठंड की रात में एक पेड़ के नीचे खड़ा था। जब मैं उसके पास गया तो देखकर हैरान रह गया उसके पास ठंड से बचने के लिए न कोई कपड़ा था और न ही उसके पास जूते-चप्पल। मैंने उससे पूछा कहां से आए हो और जाना कहां है, वह कंपकपाती आवाज में बोला बाबू मेँ यही आपके गांव नदिया से आया हूं और और मुझे जाना कहीं नहीं बस मैं आसरा ढूंढ रहा था तो ठंड ने मुझे यहां रुकने को मजबूर कर दिया। इतनी उसकी बात सुनते ही मैं उसको साथ लेकर अपने कमरे पर ले आया, गैस जलाई और गरमा-गरम चाय बनाई। मैंने उसकी तरफ चाय का प्याला बढ़ाया तो वह किसी तरह से कंपकपाते हाथों से उसने वह चाय का प्याला पकड़ा। जब वह अंगीठी से अपनी ठंड को थोड़ा सा दूर कर लिया तो मैंने उससे पूछा क्या करते हो तो उसने एक आशा की नजर से देखता हुआ बोला बाबू मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूं, इसलिए कहीं भी जाता हूं तो मुझसे सब यही पूछ हैं कितनी पढ़ाई की है अब आप ही बताएं जिसका बचपन ही कचरे से पेट भरने का साधन ढूंढता रहा हो वो कैसे पढ़ाई कर पाए। मैं थोड़ा सा रुका और फिर उससे पूछा क्यों कचरे से पेट भरने का क्या मतलब तो उसने साहस जुटाते हुए बोला मुझे याद नहीं कि मैरे मां-बाप कब गुजर गए और मेरा बचपन कैसे बीता। हां, यह जरूर याद है कि जब मुझमें समझ आई तो मैं कचरा एकत्रित कर अपना पेट भर लेने लगा था। यह सुनते ही मेरी आंखे ढबढबा आईं। मैंने उसको कुछ गरम कपड़े और कुछ खाने का सामान दिया। खाना खाने के बाद उसको सोने के लिए कहा तो वह कहने लगा पता नहीं बाबू क्यों आप ऐसे पहले इंसान मिले जो कि अन्य कोई बात पूछ बगैर आसरा दिया नहीं तो इस ठंडक में मैं शायद मर ही जाता। अब वह सोने चला गया था, अगली सुबह मैं उससे पहले उठता कि वह मेरे कमरे से जा चुका था और वह जरूरता की सारी चीजे वही हमारे पास छोड़ गया था। बस उसकी कुछ क्षण की यादे मेरे पास बची थी और कुछ बचा था तो सिर्फ मैं और मेरा कमरा जो एक सरसराहट में अगली रात का इंतजार में बैठ गया थे।

मंगलवार, 17 मई 2016

हमने दुनियादारी देखी कब


हमको राहें प्यारी हैं
हमने दुनियादारी देखी कब
अपने कदमों से हम जब उछले
बन जाते खेल-खिलौने
बीच सड़क जब डेरा डाले
जैसे लगता सपनों का घर
मैं लगड़ी टांग से पहाड़ पार करूं
या उछलूं कूदूं
रहिमन दोहा याद दिलाये
उद्यम, साहमं, धैर्य, पराक्रमं।