शुक्रवार, 27 मई 2016

कहते हैं लोग मुझे #अंजानी सी #किताब


कहते हैं अक्सर लोग मुझे अनजानी सी किताब
काश! कि वो इस किताब का पन्ना तो पलटते
अश्रुपूरित शब्दों में मिलते पहले उन्हीं के शब्द
काश! कि वो अगला पन्ना तो पलटते
स्वर्णों से जड़े मिलते उनके ख्वाब
काश! कि वो आगे और पढ़ते
ओझल सी निगाहें उनको कुछ धुंधली सी शब्द दिखाती
काश! कि वो पढ़ने में रुचि तो दिखाते
वो अपने को दर्पण ही अर्पण कर देते
जब वो घर से बाहर तो निकलते
काश! कि वो पढ़ते-पढ़ते खो जाते
मंजर क्या देखा होगा उन्होंने
जब मां के सामने बच्चा भूखा मर जाता है
काश! कि वो इन शब्दों की गहराई भी पढ़ते
जब जलता हो आशियां किसी का उसकी आंखों के सामने, वो बच्चा मां-मां कहकर दम तोड़ देता है
काश! कि वो पूरी ये किताब तो पढ़ते
थक जाते हम भी रुक-रुक चलकर
वो मुझको सहारा देते
हम भी मुसफिर बन उनके संग चल देते