शनिवार, 28 मार्च 2020

लौटेंगे हम भी अपने गाँव को


लौटेंगे हम भी अपने गाँव को
अभी शहर का गुरूर देखना है
कभी गुजारी थी गाँव में अल्हड़ वाली ज़िन्दगी
अब हर एक शहर में हम बस किरायेदार हैं
है यहाँ की बहुत रंगीनी दुनिया
पर रंगीनियों पर हर दर्द भारी है
शहर को गाँव से बेहतर समझ के दूर हुए
शहरों की दौलत पर रिश्तों की डोर भारी है

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

झूठ को आओ बरगलाया जाए

झूठ को आओ बरगलाया जाए 
गम को भुलाकर मुस्‍कुराया जाए 
हम और तुम में कितने दिन जीयेंगे 
आओ हंसकर ये वक्‍त गुजारा जाए