शनिवार, 8 मई 2021

इंसान ने जो बोया उसी को काट रहा, प्रकृति संतुलन बनाने के लिए किसी न किसी रूप में परिवर्तन लाती है, कभी महामारी तो कभी कुछ और...

इंसान खुद के लिए इक अलग तरह की दुनिया चाहता है, फिर चाहे उसकी बनाई दुनिया में न जाने कितने पेड़ों की बलि चढ़ जाए और न जाने कितने बेजुबान पशु-पक्षी मर जाएं। कहा जाता है कि मनुष्य सभी जीवों में श्रेष्ठ होता है, लेकिन ये पूरी तरह से गलत साबित होता दिख रहा है, जिस तरह से इंसान अपनी सुविधाओं के लिए किसी दूसरे की जिंदगी छीनता चला जा रहा है।


अपनी सुविधाओं के लिए चढ़ाते गए पेड़ों की बलि

हमें याद है जब हम जूनियर हाईस्कूल के छात्र हुआ करते थे, उस वक्त स्कूल जाते समय रास्ते में बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। ये बात वर्ष 2006-07 की है, लेकिन अब जब हम उसी रास्ते से गुजरते हैं तो पूरा रास्ता वीरान सा लगता है, क्योंकि डेवलपमेंट हो गया है, अर्थात स्कूल के रास्ते पर पहले सिंगल रोड हुआ करती थी तो चौड़ाई कम थी, लेकिन जब फोर लेन बनी तो उन बड़े-बड़े पेड़ों को काट दिया गया। हजारों की संख्या में पेड़ों की बलि चढ़ी, सिर्फ इंसानों की सुविधा के लिए, लेकिन उन पेड़ों की जगह अन्य कोई पेड़ नहीं लगाए गए। आज भी फोरलेन, सिक्सलेन और एट लेन से लेकर न जाने कितनी लेन तक की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन जरा विचार करें कि क्या इन रास्तों पर काटे गए उन फलदार पेड़ों के लिए हम सब हत्यारे नहीं हैं, जिनको हमारी सुविधा के लिए बलि चढ़ा दिया गया या फिर जो चढ़ाए जा रहे हैं। 



हाथ में स्मार्टफोन, पर खरीद रहे हैं हवा

पहले जिंदगी कितनी सुहानी थी, फिर एक डब्बा आया, जिले पहले लैंड लाइन फोन कहा गया। इसके बाद इसका स्वरूप बदला और मोबाइल बन गया या कहें स्मार्टफोन बन गया, हर बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी के हाथों में आ गया, फिर इंटरनेट के लिए स्पीड की दौड़ शुरू हुई और इस दौड़ ने रेडिएशन ऐसा फैलाया कि प्यारे बेजुबान पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गईं। इंसान यहीं नहीं रुका उसे तो स्पीड की पड़ी थी, इंतजार करना नहीं जानता, इसलिए 2जी, 3जी, 4जी और अब 5जी का ट्रायल हो रहा है, लेकिन क्या ये जो सारी सुविधाएं हमें मिल रही हैं तो क्या आपको लगता है कि ये सब हमें मुफ्त या पैसे के दम पर मिल रही हैं। नहीं, बिल्कुल नहीं, ये सारी सुविधाएं इंसानों और बेजुबान पशु-पक्षियों की जिंदगी को तबाह करके मिल रही है। रेडिएशन की वजह से कई तरह की बीमारी होने लगी, लेकिन आप कहेंगे कि उसका तो इलाज है, हां बिल्कुल है, लेकिन क्या सभी को मिलता है ये इलाज या सभी के पास इतने पैसे हैं कि वह इलाज करा सके। माना इलाज भी करा लें तो भी क्या पता जिंदगी बच जाए, क्योंकि इलाज के बाद भी तो इंसान मर रहा है। कई शोधों में ये दावा किया गया कि जितना ज्यादा रेडिएशन बढ़ेगा उतनी ज्यादा जिंदगियां बर्बाद होंगी। हां ये जरूर है, जब पशु-पक्षियों पर ये अत्याचार हुआ तो इंसानों को कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन जब इंसान पर आया तो वह बिन पानी के मछली जैसे तड़पने लगा। 


कहने को मेट्रो सिटी पर घुटन सी जिंदगी है यहां

इसान को तय करना है कि उसके लिए क्या जरूरी है क्या नहीं, अगर हमें कुछ कम में ही ज्यादा सुकून मिल सकता है तो हम उस ओर क्यों नहीं जा रहे हैं। आज मेट्रो सिटी बड़े गर्व के साथ नाम लिया जाता है। लोगों कहते है कि अरे वाह तुम तो मेट्रो सिटी में रहते हो, लेकिन क्या उन मेट्रो सिटी में कंक्रीट के जंगल के अलावा कुछ और है। जहां सिर्फ ऊंची-ऊंची बिल्डिंगें होती हैं, दूर-दूर तक पेड़ नहीं दिखते। हां, इसमें हम भी गुनाहगार हैं, क्योंकि आप लोगों तक ये जो बातें पहुंचा रहे हैं, उसमें भी इंटरनेट का इस्तेमाल है, लेकिन क्या अब भी इंसान नहीं सुधरेगा, अगर नहीं तो एक कहावत है... परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। वह अपने अनुसार सब ढाल लेगी किसी न किसी बीमारी के नाम पर या फिर जल प्रपात के नाम पर या कहें कि किसी आपदा के नाम पर उसको हर तरह से अपनी स्थिति को बनाए रखना आता है, बस संभलना तो इंसान को है।


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