शनिवार, 22 मई 2021

1G से 5G की स्पीड और इंसानों की उजड़ती दुनिया, एक नजर कुछ उठते सवालों पर, क्या इनका जवाब है आपके पास


जब हमारे जीवन में सिर्फ पत्राचार के लिए चिट्ठी हुआ करती तो इंसान कितना मस्त और सेहतमंद हुआ करता था, लेकिन फिर इंसान के जीवन में दबे पांव काल का आगमन शुरू हुआ। पहले इंसानों को लगा कि ये हमारे जीवन को बदलने आया, पर उसे क्या पता था कि इसकी आदत पड़ेगी तो इसकी कीमत भी जान से भी चुकानी पड़ेगी। 


कुछ यूं चला सुकून और चैन छिनने का दौर

अमेरिका में 1980 के दशक में सबसे पहले एनालॉग सिग्नल वाला इंटरनेट आया, जिसे हम सब 1G या कहें सिंपल बैटरी वाला फोन जिससे सिर्फ बात होती थी। हम लोग इसे लैंडलाइन भी कहते थे। इसका असर जीव जंतुओं पर देखा गया। इसके बाद 1991 में आया 2G या कहें GSM आधारित फोन, यह मोबाइल फोन डिजिटल सिग्नल पर काम करता था। इसकी स्पीड 64kbps थी। गिद्धों के देश से गायब होने के पीछे 2G का हवाला दिया जाता रहा है, क्योंकि 2G के ट्रायल से लेकर इसके आने तक में बड़ी संख्या में गिद्धों की मौत हुई थी। यही नहीं अन्य जन्तुओं पर इसका असर पड़ा था। 


2000 में 3G आया। लोगों को इंटरनेट स्पीड की लत लग चुकी थी, लेकिन उन्हें इसके दुष्परिणाम नहीं मालूम थे। इससे कई जीव-जन्तुओं की प्रजाति विलुप्त हो गई। इसके बाद भारत में 2011 में 4G का आगमन हुआ। यह सामान्य तौर पर VoLTE  (वोल्टी) पर काम करता है। साधारण शब्दों में कहें तो ये नेट बेस पर काम करता है। इसका मतबल है कि इंटरनेट हमेशा चालू रहेगा। इसके लिए कई कंपनियों को अपने मोबाइल फोन में बदलाव भी करने पड़े। इसका इंसानों के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ा। इसकी रेडिएशन फ्रीक्वेंसी अब तक की सभी 1G, 2G, 3G से ज्यादा है। इसकी इंटरनेट स्पीड 1 Gbps तक की है। इसका मतबल जितनी इंटरनेट स्पीड होगी उतनी तेजी से रेडिएशन का प्रसार होगा। 


इसके बाद 5G का ट्रायल शुरू हुआ। इसके शुरू होते ही इंसानों के जीवन को तबाह कर दिया, क्योंकि इसकी रेडिएशन की क्षमता अबतक सभी से ज्यादा बताई जा रही है। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। जब भी 5G का ट्रायल शुरू होता है तो इसका असर इंसानों के जीवन पर दिखता है। किसी न किसी महामारी के रूप में ये इंसानों के जीवन को प्रभावित करता है। 5G का कई देशों में भारी विरोध भी हुआ है। 


सरकारें क्यों देती हैं इसको अनुमति

Qualcomm के मुताबिक, 5G अभी तक 13.1 ट्रिलियन डॉलर ग्लोबल इकोनॉमिक आउटपुट दे चुका है। ये हाल तब है, जब मात्र केवल 34 देशों में ही 5G चल रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें आखिर क्यों इसको अनुमति देती है। वियावी (VIAVI's) के डेटा के मुताबिक, दुनिया के 34 देशों के 378 शहरों में 5जी नेटवर्क उपलब्ध है।


रेडिएशन कितनी तरह का होता है?

माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से।


अब तक हुए शोधों में हुआ खुलासा

-हंगरी में साइंटिस्टों ने पाया कि जो युवक बहुत ज्यादा सेल फोन का इस्तेमाल करते थे, उनके स्पर्म की संख्या कम हो गई।

-जर्मनी में हुई रिसर्च के मुताबिक जो लोग ट्रांसमिटर ऐंटेना के 400 मीटर के एरिया में रह रहे थे, उनमें कैंसर होने की आशंका तीन गुना बढ़ गई। 400 मीटर के एरिया में ट्रांसमिशन बाकी एरिया से 100 गुना ज्यादा होता है।

-2010 में डब्ल्यूएचओ की एक रिसर्च में खुलासा हुआ कि मोबाइल रेडिएशन से कैंसर होने का खतरा है।

-सेल फोन टावरों के पास जिन गौरेयों ने अंडे दिए, 30 दिन के बाद भी उनमें से बच्चे नहीं निकले, जबकि आमतौर पर इस काम में 10-14 दिन लगते हैं। गौरतलब है कि टावर्स से काफी हल्की फ्रीक्वेंसी (900 से 1800 मेगाहर्ट्ज) की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज निकलती हैं, लेकिन ये भी छोटे चूजों को काफी नुकसान पहुंचा सकती हैं।

-केरल में की गई एक रिसर्च के अनुसार सेल फोन टॉवरों से होनेवाले रेडिएशन से मधुमक्खियों की कमर्शल पॉप्युलेशन 60 फीसदी तक गिर गई है।

-2010 की इंटरफोन स्टडी इस बात की ओर इशारा करती है कि लंबे समय तक मोबाइल के इस्तेमाल से ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है।


dna को भी प्रभावित करता है रेडिएशन

2g और 3G सेल फोन से निकलने वाले आरएफआर का चूजे पर प्रभाव देखा गया। यही नहीं सेल फोन विकिरणों के लिए चूजे के भ्रूण के विकास के संपर्क में रक्तस्राव के साथ पतला साइनसॉइडल रिक्त स्थान के रूप में यकृत में संरचनात्मक परिवर्तन हुए, साइटोप्लाज्म में वृद्धि हुई वेक्यूलेशन, परमाणु व्यास और कैरियोरेक्सिस में वृद्धि हुई और डीएनए क्षति में काफी वृद्धि हुई।


नीचे ये कुछ लिंक हैं जिसको आप जरूर देखें

https://navbharattimes.indiatimes.com/other/sunday-nbt/just-life/mobile-phone-radiation-is-hazard/articleshow/14201260.cms


https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5583901/






शनिवार, 8 मई 2021

इंसान ने जो बोया उसी को काट रहा, प्रकृति संतुलन बनाने के लिए किसी न किसी रूप में परिवर्तन लाती है, कभी महामारी तो कभी कुछ और...

इंसान खुद के लिए इक अलग तरह की दुनिया चाहता है, फिर चाहे उसकी बनाई दुनिया में न जाने कितने पेड़ों की बलि चढ़ जाए और न जाने कितने बेजुबान पशु-पक्षी मर जाएं। कहा जाता है कि मनुष्य सभी जीवों में श्रेष्ठ होता है, लेकिन ये पूरी तरह से गलत साबित होता दिख रहा है, जिस तरह से इंसान अपनी सुविधाओं के लिए किसी दूसरे की जिंदगी छीनता चला जा रहा है।


अपनी सुविधाओं के लिए चढ़ाते गए पेड़ों की बलि

हमें याद है जब हम जूनियर हाईस्कूल के छात्र हुआ करते थे, उस वक्त स्कूल जाते समय रास्ते में बड़े-बड़े पेड़ हुआ करते थे। ये बात वर्ष 2006-07 की है, लेकिन अब जब हम उसी रास्ते से गुजरते हैं तो पूरा रास्ता वीरान सा लगता है, क्योंकि डेवलपमेंट हो गया है, अर्थात स्कूल के रास्ते पर पहले सिंगल रोड हुआ करती थी तो चौड़ाई कम थी, लेकिन जब फोर लेन बनी तो उन बड़े-बड़े पेड़ों को काट दिया गया। हजारों की संख्या में पेड़ों की बलि चढ़ी, सिर्फ इंसानों की सुविधा के लिए, लेकिन उन पेड़ों की जगह अन्य कोई पेड़ नहीं लगाए गए। आज भी फोरलेन, सिक्सलेन और एट लेन से लेकर न जाने कितनी लेन तक की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन जरा विचार करें कि क्या इन रास्तों पर काटे गए उन फलदार पेड़ों के लिए हम सब हत्यारे नहीं हैं, जिनको हमारी सुविधा के लिए बलि चढ़ा दिया गया या फिर जो चढ़ाए जा रहे हैं। 



हाथ में स्मार्टफोन, पर खरीद रहे हैं हवा

पहले जिंदगी कितनी सुहानी थी, फिर एक डब्बा आया, जिले पहले लैंड लाइन फोन कहा गया। इसके बाद इसका स्वरूप बदला और मोबाइल बन गया या कहें स्मार्टफोन बन गया, हर बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी के हाथों में आ गया, फिर इंटरनेट के लिए स्पीड की दौड़ शुरू हुई और इस दौड़ ने रेडिएशन ऐसा फैलाया कि प्यारे बेजुबान पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो गईं। इंसान यहीं नहीं रुका उसे तो स्पीड की पड़ी थी, इंतजार करना नहीं जानता, इसलिए 2जी, 3जी, 4जी और अब 5जी का ट्रायल हो रहा है, लेकिन क्या ये जो सारी सुविधाएं हमें मिल रही हैं तो क्या आपको लगता है कि ये सब हमें मुफ्त या पैसे के दम पर मिल रही हैं। नहीं, बिल्कुल नहीं, ये सारी सुविधाएं इंसानों और बेजुबान पशु-पक्षियों की जिंदगी को तबाह करके मिल रही है। रेडिएशन की वजह से कई तरह की बीमारी होने लगी, लेकिन आप कहेंगे कि उसका तो इलाज है, हां बिल्कुल है, लेकिन क्या सभी को मिलता है ये इलाज या सभी के पास इतने पैसे हैं कि वह इलाज करा सके। माना इलाज भी करा लें तो भी क्या पता जिंदगी बच जाए, क्योंकि इलाज के बाद भी तो इंसान मर रहा है। कई शोधों में ये दावा किया गया कि जितना ज्यादा रेडिएशन बढ़ेगा उतनी ज्यादा जिंदगियां बर्बाद होंगी। हां ये जरूर है, जब पशु-पक्षियों पर ये अत्याचार हुआ तो इंसानों को कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन जब इंसान पर आया तो वह बिन पानी के मछली जैसे तड़पने लगा। 


कहने को मेट्रो सिटी पर घुटन सी जिंदगी है यहां

इसान को तय करना है कि उसके लिए क्या जरूरी है क्या नहीं, अगर हमें कुछ कम में ही ज्यादा सुकून मिल सकता है तो हम उस ओर क्यों नहीं जा रहे हैं। आज मेट्रो सिटी बड़े गर्व के साथ नाम लिया जाता है। लोगों कहते है कि अरे वाह तुम तो मेट्रो सिटी में रहते हो, लेकिन क्या उन मेट्रो सिटी में कंक्रीट के जंगल के अलावा कुछ और है। जहां सिर्फ ऊंची-ऊंची बिल्डिंगें होती हैं, दूर-दूर तक पेड़ नहीं दिखते। हां, इसमें हम भी गुनाहगार हैं, क्योंकि आप लोगों तक ये जो बातें पहुंचा रहे हैं, उसमें भी इंटरनेट का इस्तेमाल है, लेकिन क्या अब भी इंसान नहीं सुधरेगा, अगर नहीं तो एक कहावत है... परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। वह अपने अनुसार सब ढाल लेगी किसी न किसी बीमारी के नाम पर या फिर जल प्रपात के नाम पर या कहें कि किसी आपदा के नाम पर उसको हर तरह से अपनी स्थिति को बनाए रखना आता है, बस संभलना तो इंसान को है।


बुधवार, 3 मार्च 2021

एक तरफा प्यार हो



 एक तरफ़ा प्यार हो

न मिलने की खुशी

न बिछड़ने का गम

जिसमें वसंत भी हो

और पतझड़ भी हो

खुद के आंसू खारे लगे

प्यास लगे तो अहसासों का घूट पीए

हर शाम भी मदहोश करती हो

अहसासों में डूबे #दिल के किनारे

न तुम हो न तुम्हारी यादें 

बस एक खालीपन सा हो

जिसमें फिर तुम आ जाओ

चले दोनों सैर पर

और फिर लंबी गप्पे मारें

एक तरफा प्यार हो

बस एक तरफा #प्यार हो

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

न हम उनके जैसे थे न हैं और न होंगे

 जब उनसे रुखसत हुए 

हाल ए दर्द लिए रुखसत

सोचा दर्द बेच आएं बाजार में

हम भी गए बाजार में

बाजार जख्म खानेवालों से भरा मिला

अपना दर्द लिए ही लौट आये 

साथ ही एक और दर्द से मुलाक़ात हो गई

अब तो दर्द में ही जीने का सफर चल पड़ा

अब तो दर्द दे भी जाए कोई तो फर्क नहीं पड़ता

न हम उनके जैसे थे न हैं और न होंगे

फिर भी उनसे किसी मोड़ पर मुलाक़ात होगी तो नजरें जरूर मिलाएंगे


सोमवार, 9 नवंबर 2020

थोड़ी सी मुस्कुराई, शरमाई और लौट गई

 रह गई मेरी देहरी पर आते आते

झांककर वो वहीं ठहर गई

थोड़ी सी मुस्कुराई, शरमाई और लौट गई

हमने भी देहरी से और शहर का रास्ता देख लिया

अब जो आएगी देहरी पर तो वो रूआँसु से होके जायेगी

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

सत्ता सुख में खो जाएंगे

 कुछ पल का उबाल 

कुछ पल का हाहाकार 

फिर हम एक धुन में होंगे 

आगे बढेंगे फिर बढेंगे 

मालायें पहनाई जायेंगी 

दीप जलाए जायेंगे 

मेरी शहादत पर 

फिर से सियासत का रंग चढ़ाया जाएगा 

कुछ अपने ही कर्ता धर्ता 

लानत मानत देंगे 

फिर सुखभोगी की तरह 

सत्ता सुख में खो जायेंगे 

जयहिन्द

सोमवार, 14 सितंबर 2020

गर्व से कहो हम हिंदीवासी हैं

 कौन धरा पर यह किसको भाति है

हिंदी की बिंदी खुद अपना #अस्तित्व बचाती है
जिस #जुबान पर #मॉम से पहले #माँ आती है
ऐसे देश में हिंदी खुद को लड़ता पाती है
#फ़िल्मी #दुनिया हिंदी से ही #मालामाल बनती है
पर इन #फिल्मकारों को हिंदी बोलने में शर्म महसूस होती है
#विद्या धन आलय में जिससे पैसा आये वह #भाषा प्यारी है
#अमेरिका, #जापान, #चीन अपनी #मातृभाषा पर इतराते हैं
इक भारतवासी हैं जो #हिंदीवासी कहलाने में लज्जित महसूस करते हैं
बड़े बड़े #लेख छपे #अखबारों में
हमने आज सुना है हिंदी का भी दिन होता है हिंदी वालों में
गर्व से कहो हम हिंदीवासी हैं