गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

नहीं पता प्रेम क्या, बस प्रेमी हूँ



जब वो कोयल सी बोलती है तो मानो एक शरीर और आत्मा में हलचल होने लगती है, उसके रहने पर उसको नहीं देखता , पर न रहने पर रिक्त स्थान को कइयों बार देखता हूँ और बस देखते रहना चाहता हूँ। हमें नहीं पता हमारा उससे क्या है, लेकिन फिर उसे क्यों देखता हूँ, शायद मैं उसे चाहने लगा हूँ। हमें नहीं पता वह किधर है और न ही मुझे पता मैं उसका पहला या दूसरा प्रेम हूँ । बस एक दरिया से मिलके दूसरा दरिया अब समुन्दर बन बैठा है। छोड़ने को सबकुछ छोड़ दिया जाये, लेकिन कोई ये भी तो बताये ये दर्द किस बाजार में बेचा जाए। लोग कहते हैं दूसरे से प्रेम होगा तो वह याद नहीं रहेगा, परन्तु जब दूसरे से होगा तब न, जब उसको विस्मृत करूँगा तब न। और हाँ जब इस हृदय के द्वार पर दूजा प्रवेश करेगा तो वो भी उसकी यादों से दो चार होगा, शायद प्रेम को देखकर वो लौट ही जाये। फिर सोचता हूं छोड़ों चलो उसकी यादों के सहारे ही ये जीवन काटा जाये और उसको धड़कन बना के विरह में जीवन जिया जाए।

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