शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

न जाने कहां से आया

इतनी बेरहम थी दुनिया
मेरा दर्द न आंक सकी
कुछ पलों को वो साथ रही
फिर हमें वहीं छोड़कर चली गई
न तमाशा हुआ
न कोई शोरगुल हुआ
हम मिले अंजाने शहर में
उन अंजाने हाथों को पकड़ा
एक अंजाना ही सही
पर एक अपनापन दे गया
कुछ पल ही सही
कुछ हंसी दे गया
हमें वह हजारों सपने दिखा गया
इस बेरहम दुनिया में
न जाने कहां से आया
और एक दिन की तरह बीत सा गया

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