सर झुक जाता है तेरी बंदगी में ऐ रब
फरेब का चादर ओढ़कर एक पल न चल पाता हूं
रहते हैं लाख बंदिशों में जो
ख्वाहिशों के झोंको में उड़ जाया करते हैं
तमन्नाएं छटपटाती हैं दिल के बंद दरवाजे के पीछे
दिल के दरवाजे के खुलने तक तमन्नाएं मर जाया करती है
हर रोज जिंदगी के कुछ पल मांगता हूं उस रब से जीने के
कुछ खोने के डर में ये पल बीत जाया करते हैं
फरेब का चादर ओढ़कर एक पल न चल पाता हूं
रहते हैं लाख बंदिशों में जो
ख्वाहिशों के झोंको में उड़ जाया करते हैं
तमन्नाएं छटपटाती हैं दिल के बंद दरवाजे के पीछे
दिल के दरवाजे के खुलने तक तमन्नाएं मर जाया करती है
हर रोज जिंदगी के कुछ पल मांगता हूं उस रब से जीने के
कुछ खोने के डर में ये पल बीत जाया करते हैं
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