मंगलवार, 31 जनवरी 2017

रात जैसे ठहरी थी सुबह के इंतजार में

रात जैसे ठहरी थी सुबह के इंतजार में
साखों पर ओस थी पिघलने के इंतजार में
हम घर से न निकले आपके इंतजार में
बक बक करने को जुबां थी इंतजार में
चलती रही घड़ी की सुई समय के इंतजार में
हम रुके नहीं खो जाने के इंतजार में

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