शनिवार, 28 जनवरी 2017

आखिर ए कैसा बाजार?

सेक्स इच्छा की कमी या मन न करना। शुक्राणुओं का कम या  कमजोर होना बनना ऐसी लाइन एक दो नीं अनगिनत हैं। न्यूज चैनल से लेकर पारिवारिक शो चैनल और अखबारों में आए दिन देखे जाने वाले विज्ञापनों में आपको दिख जाएंगे। पता नहीं हम किस समाज में जी रहे हैं और रही सही कसर इन विज्ञापनों में लड़कियों का इस्तेमाल करके पूरी कर दी जाती है।
अगर आपको अपना प्रचार करना ही है तो बहुत से तरीके हैं। विज्ञापनदाता इसमें बदलाव कर अपनी बात पहुंचा सकता है। अब विज्ञापना की इसमें क्या गलती, गलती वो बेचारे चैनल और अखबारों वालों की है, अब उनकी क्या गलती है उनको भी तो विज्ञापनों से पैसा कमाना है तो वो क्यों इस पर आपत्ति ले। आखिर में वो एक लाइन में इसमें जोड़ जरूर देते हैं विज्ञापन के संबंध में आप खुद जिम्मेदार होंगे। बेचारे अखबार वाले और विज्ञापन वाले, चैनल वाले कौन दोषी? एक प्रोडक्ट बेचने के लिए ऐसी पंच लाइनों का प्रयोग और ऊपर से लगा दी महिला की फोटो, रही-सही कसर वह भी पूरी हो जाती है।
आखिर ए कैसा बाजार है? जहां समाज, संस्कार धरे के धरे रह जाते हैं सिर्फ पैसा ही हमे दिखता है। चाहे किसी प्रोडक्ट की बात हो, फिल्म की बात हो या फिर राजनीति की कोई इससे अछूता नहीं, आखिर ऐसा क्यों? ऐसे न जाने कितने सवाल है जो बाजार से ताल्लुक रखते हैं। आखिर हम-आप भी दोषी हैं कहीं न कहीं ऐसे बाजारों को माहौल देकर।

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