शुक्रवार, 16 जून 2017

क्या कभी सोचा है उनकी भी इक ज़िन्दगी होती

कभी सोचा है इक #उम्र ढलने के बाद क्या होता है उनका
वो जो #मज़बूरी में अपना #जिस्म बेचती हैंक्या कभी सोचा है उनकी भी इक ज़िन्दगी होतीकैसे उनको हीं समझा जाने लगता है
कैसे ज़िन्दगी जीती होंगी सोचा है तुमने
बस तुम तो #वासना की आग में जलते रहे हो
जिसने उस आग में दूसरों को जलाया
क्या कभी सोचा है उनकी भी इक ज़िन्दगी होती
बस तुम #लोगों ने वेश्या का नाम देकर उससे जीवन छीन लिया
और इस #दुनिया ने उसे #वेश्या से ज्यादा कुछ नहीं समझा

रविवार, 4 जून 2017

सहर ने सताया इक उम्र तक बहुत

चला था घर से कुछ पाने की चाह में
सफर में मैं अपना सबकुछ गवां बैठा
जो थे साये की तरह मेरे साथ
एक शक की वजह से गवां बैठा
अब बैठता हूँ बेंच के किनारे की जगह पर
अब बीच में बैठने में डर सताने लगा है
हवाओं के मिलन में अब खुशबू जो घुलती है
अब उन खुसबुओं से अपना रिश्ता गंवारा सा लगता है
सहर ने सताया है हमे इक उम्र तक बहुत
अब सहर छोड़कर हम सतायेंगे बहुत

शनिवार, 3 जून 2017

हमारी गली के मोड़ पर वो मकान आता है

#हमारी #गली के मोड़ पर वो #मकान आता है
निकलते हैं जब भी उनका #एहतराम आता है
#शर्म से #नज़रे झुका लेते हैं #उनको #देखकर
जब निकलते #वक्त वो अपनी #छत पर आता है