बुधवार, 28 नवंबर 2018

‌मेट्रो सिटी


‌यहाँ जिंदगी सिर्फ दौड़ती है। न यहाँ न कोई अपने से खुश है न दूसरे की ख़ुशी में शरीक होना चाहता है। रात होते ही प्रेमी युगल यहाँ दिखाना आम बात है। पर सच प्रेम सिर्फ उनकी कामनाओं तक सीमित रहता है, जो आज किसी और के साथ तो कल किसी और के साथ होता है। यहाँ प्रेमिका और प्रेम एक छलावा है जो सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा और अपनी जरूरत के अनुसार बदलता है। यहाँ चमड़ी की कीमत तक लगती है वो भी मजबूरी में नहीं अपनी इच्छाओं की पूर्ति के
‌ लिए। यहाँ ग्रुपों पर सब उपलब्ध है। घुटनों से नीचे तक कपड़े कम ऊपर ज्यादा रहते हैं। ऊंची ऊंची बिल्डिंगों में रातों को महफ़िल सजती है फिर बजती भी सुरीली रातों में। सिगरेट की कश मारतीं  युवतियां और शाम ढले पुरुष मित्र के साथ चेस करती शराब के ग्लास के युवतियां खूब मिलेंगी।
‌चेहरे की खूबसूरती भी आँखों का धोखा भी हो सकता है। 

रविवार, 25 नवंबर 2018

राधे का प्रेम

श्रीहरि:
“उद्धव काका!!!....मुझे आज आपसे कुछ पूछना है..... ये बताइए....मेरी १६१०८ माताओं में... किसने पिता जी के ह्रदय में सबसे प्यारा स्थान प्राप्त किया है???” प्रद्युम्न जी ने अपने सोलहवें जन्मदिन पर उद्धव जी से पूंछा...

बताइए न...उद्धव काका!!!.... मुझे पता है...इस प्रश्न का हल.... केवल आपके पास ही होगा...” उद्धव जी के शांत ही रहने पर प्रद्युम्न उनसे जिद्द करने लगे....

उद्धव जी बड़ी ही दुविधा में फंस गए... आखिर वे प्रद्युम्न को कैसे बताएं ...की उसके प्रश्न का हल...उसकी १६१०८ माताओं से भी परे है...

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा... “उनमे से किसी को भी नहीं....कृष्ण के ह्रदय का सबसे प्यारा स्थान तो किसी और को ही प्राप्त है... वे कृष्ण की स्वामिनी ...श्री राधा रानी हैं...”

“क्या??? श्री राधा रानी???.... ये कौन हैं???....काका...!!!” प्रद्युम्न जी आश्चर्य चकित होने के साथ साथ कुछ नाराज़ भी हुए...

“हाँ वत्स!!... ब्रज की एक बाला.....एक गोपी....श्री राधे....अब मै तुम्हे बताता हूँ की वे कौन हैं... और कैसे वे कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं....” उद्धव जी बोले...

एक बार की बात है....तुम्हारे पिता जी की तबियत इतनी बिगड़ गयी...की कोई भी वैध उनका इलाज़ कर पाने को सफल ना हुआ... और हम सब को लगने लगा...की ये हमारा कृष्ण के साथ आखिरी समय हो सकता है... “ उद्धव जी उस घटना को याद करते करते व्याकुल हो गए....

प्रद्युम्न ने उन्हें कुछ जल दिया और पूंछा... “फिर काका???”

उद्धव जी ने आगे बताया.... “द्वारकाधीश ने स्वयं अपने इलाज़ का उपाय बताया... और सबसे उनका वह उपाय करने को पूंछा..... लेकिन तुम्हे पता है प्रद्युम्न .....१६१०८ रानियों में कोई भी उनका वह उपाय करने को राजी ना हुआ...जिस से भगवान् कृष्ण ठीक हो सकते थे... उनमे से कोई भी वह उपाय करके बड़े पाप का जिम्मेदार नहीं बनना चाहता था.....”

प्रद्युम्न ये सुनकर आश्चर्य में पड़ गए... “फिर पिता जी के प्राण किसने बचाए...काका???...जल्दी बताइए...”

“श्रीराधे ने....प्रद्युम्न....!!!.... वो श्री राधे ही थीं....जिन्होंने उस बड़े पाप का जिम्मा अपने सर लिया... और यही प्रमाण है....की वे कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं...जो उन्होंने कृष्ण के प्राणों की रक्षा के लिए... आपना लोक-परलोक सब न्योछावर कर दिया....”उद्धव जी ने प्रसन्न होकर बताया...

“आखिर पिता जी ने ऐसा कौन सा उपाय बताया था...काका...??? जो ब्रज की वो बाला ही कर सकी.... और जिसे करने का साहस ...पाप से बचने के लिए मेरी किसी माता ने नही किया... ???” प्रद्युम्न ने आँखों मजाल भरकर पूंछा....

उद्धव जी ने श्री राधे के कमल-चरणों का ध्यानं करते हुए आँखें बंद कर ली...और बताया... “अपने चरणों का जल!!!....प्रद्युम्न... श्रीकृष्ण ने अपनी किसी भक्त के धूल भरे चरणों का जल ही अपनी बिमारी का उपाय बताया था ...और श्री राधे ने ही अपना चरणामृत पाप की परवाह किये बिना... भगवान् कृष्णा को पीने के लिए भेज दिय था....अब तुम्ही बताओ....भला किसी और को कृष्ण के ह्रदय में सबसे प्यारा स्थान कैसे प्राप्त हो सकता है???”

प्रद्यम्न जी श्री राधारानी की जय जय कार करते हुए.... उनके दर्शन को....वृन्दावन को भाग चले....

प्रेम तो बंधनमुक्त कर देता है


प्रेम निष्कपट, निश्छल और यदि भावपूर्ण तो वह इंसान को पूरी तरह से स्वतंत्र कर देता है। उसमें फिर किसी भी तरह का बंधन नहीं होता और न ही किसी भी चीज की लालसा रहती है। वह अनंत काल में स्वतंत्र हो जाता है।
प्रेम न रूप देखता है न धन—धान्य देखता और न ही उसको प्रेम के सिवाय कुछ सामने वाले से पाने की इच्छा रहती है।
प्रेम तो एक होता है, लेकिन लोग उसे दो इंसान की जिस्मों को जोड़कर देखता है। उसे नहीं पता होता है कि प्रेम का मतलब ही एक होना उसमें दो का सवाल ही नहीं उठता है।
प्रेम होने पर ईश्वर का भी आशीर्वाद मिलता है। जैसे बच्चे को अपनी मां से पहला प्रेम होता है उसके बाद बहन—बंधु और प्रेमिका से हो सकता है, लेकिन क्या प्रेम हमेशा पाने की इच्छा से होता है तो कतई नहीं।
प्रेम होने पर किसी प्रकार का मोह, माया ग्रसित नहीं कर सकती है, वह तो प्रेम होने पर और भी आनंदित रहने लगता है, क्योंकि जो अभी तक वह अपूर्ण रहता है प्रेम उसे पूर्ण कर देता है। और वह पूर्णानंद में डूब जाता है।
प्रेम को बल अथवा धन से नहीं पाया जा सकता है। प्रेम को तो प्रेम से ही पाया जा सकता है।

सोमवार, 19 नवंबर 2018

कभी कभी खुद के लिए मुस्कुरा लिया करो


तुम अपनी अच्छाई रख लो
हम अपनी बुराई रख लेते
मिलो तो कुछ दिल की भी बता दिया करो
सारी जलन सिर्फ सिगरेट पर मत निकल दिया करो
अगर मानते हो हमें अपना हमनवी तो हमसे भी कुछ बता दिया करो
माना की हम उनमें नहीं नहीं हो सकते
पर दुश्मन समझ कर ही गरिया दिया करो
अंदर से जो समंदर दबाये बैठे हो
साथ बैठे तो उसे दरिया बना दिया करो
ठीक है तुम्हे हमारी किसी मोड़ पर जरूरत न पड़े
पर एक तिनके की तरह याद तो रख लिया करो
माना तुम्हारे अपने  बहुत से सिद्धांत है
पर कभी सिद्धांतों से हटकर भी चल लिया करो
ये जो सभी की ख़ुशी के खातिर सारा जहर खुद पीते हो
कभी कभी खुद के लिए मुस्कुरा लिया करो