रविवार, 10 जुलाई 2016

जब #बेटी बोझिल सी लगने लगे

जब बेटी बोझिल सी लगने लगे
जब बेटी से युवती बनने लगे
देखो समाज कैसे तंस कसता
आंखे फाड़-फांड़कर देखता
जब बेटी को खुद को सुरक्षित न पाती
तब समाज कलंकिनी कलमुही कहता
देखो समाज कैसे तंज कसता
ये समाज की देन है
बेटी खुद को कैसे करती
सिस-सिसकर खूब रोती
अपना दर्द खुद ही पी जाती
फिर भी एक मां बनकर
एक समाज को जन्म दे जाती
जब बेटी बोझिल सी लगने लगे

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