मंगलवार, 5 जुलाई 2016

हम सहज ही सबकुछ #भूल जाना चाहते थे

हम हैं तो तुम हो
तुम हो तो हम हैं
हम नहीं तो हमारी यादें हैं
तुम नहीं तो तुम्हारी यादें हैं
उस दिन तुमने क्या कहा था
जब हम चाय की चुस्कियां ले रहे थे
तुम्हारा आना हमारे लिए इत्तेफाक रहा
कभी किसी की बात पर अनायास हंसी निकल आती
तो कभी किसी की खिल्ली उड़ाई जाती
पर, सच में सबकी बातें निश्च्छल थीं
हम सब के हाथों में चाय की प्याली थी
और दिल में एक मीठी प्यास
बातें लम्बी थीं
इसीलिए बातों में वक्त का ठहराव था
हंसी दिन गुजर रहे थे
रोज कुछ नए दोस्त मिल रहे थे
पुराने भी बहुत याद आ रहे थे
गुजर दिन कुछ याद दिला रहे थे
आने वाले दिन कुछ सपने दिखा रहे थे
पता नहीं सपना था या स्वप्न
हम सहज ही सबकुछ भूल जाना चाहते थे
जैसे रेत पर बने पदचिह्न
जिसे लहर अपने में समा लेती है

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