गुरुवार, 16 जून 2016

कुछ नहीं होता #शहर-दर-शहर बदलने से

कुछ चेहरों की रूमानियत देखी
कुछ चेहरों की मासूमियत
कुछ चेहरों को आज भी पढ़ रहा हूं मैं
कुछ चेहरों की स्मृतियां शेष हैं मेरे मस्तिष्क में
कुछ को मैं गले लगा के वर्षों पहले विदा कर चुका हूं
कुछ नहीं होता शहर-दर-शहर बदलने से
कुछ होता तो शहर क्यों बदल जाते
कुछ उनमें रहते लोग क्यों बदल जाते
कुछ को याद करना नहीं चाहता हूं मैं अब
कुछ को उनके घर तक छोड़ आना चाहता हूं मैं अब
कुछ नहीं कह सकता हूं मैं अब
हो सकता मैं ही बदल रहा हूं मैं अब 

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