मंगलवार, 28 जून 2016

#ईश्वर को देखा नहीं हमने

मैं हूं कुछ नहीं
आप की तरह मुसाफिर हूं
आज यहां तो कल और कहीं ठिकाना है
पर जब भी मिलता हूं आप से
चेहरे पर मुस्कान खींच आती है
 पता नहीं ये क्यों होता है
हो सकता है हम और आप हर जनम में मिल रहे हों
जनम के साथ हम लोगों के मुखौटे बदल गए हों
पता नहीं क्यों आपकी आवाज सुनकर ऐसा लगता है जैसे
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे से आवाज आई है
ईश्वर को देखा नहीं हमने
जब आपको देखता हूं, ईश्वर दिख जाता है
सूरज की किरणों के जैसे
आपकी मुख की लालिमा है
आपको सूरज समझकर प्रणाम करता हूं
आप जहां भी रहेंगे वहां की फिजा रोशन रहेगी
अंत में अपने घुटनों के बल बैठ गया
और आपको स्मरण कर विदा लेता हूं
ईश्वर! ईश्वर!

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