गुरुवार, 23 जून 2016

मैं मौसम बनकर फिर आऊंगा

वो मुझे इस कदर छोड़कर चल दिए
जैसे बारिश बरस के चल दिए
बूंदे भी गिरती रहीं मेरी बाहों पर हर वक्त
हम गुजरे जिधर से बारिश बरस कर गुजर गई
आज यहां कल और कहां मिलेंगे हम लोग
हर सफर का मजा लेकर चलते रहे
मुकद्‌दर को क्या मंजूर
वो तो वही जाने
मैं मौसम बनकर फिर आऊंगा
बारिस बरसाने
मिलते बिछड़ते कुछ गम छिपाते
यूं ही मिलते रहेंगे जनम जनम के तराने
न कुछ मेरा सोच के चला मैं
गुजरा हुआ समय छोड़कर चला मै
पतझड़ के बाद सावन छोड़कर चला मैं
बारिश के बाद अगला ऋतु छोड़कर चला जाऊंगा मैं
मैं वह हर लम्हा हूं जो तुझे खुश कर चला जाऊंगा मैं

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