शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

हाँ पागल हो गया हूँ


यूं तो मंजिल के सफर में मुसाफिर पागल होता है, और उसे कोई पागल समझाता है तो उससे बड़ा पागल कोई नहीं होता है।
रात में उठ-उठकर जागना और फिर एक बेचैन हो जाना, फिर कुछ क्षणभर बाद लेट जाना, लेकिन आँखें मूंदने पर भी लक्ष्य सपना बनकर आने पर फिर उठ जाना और अपने कमरे में कहीं पड़ी किताबों को खोजना, गूगल, बिंग, विकीपीडिया और सोशल मीडिया के जरिये अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयत्न करना तो आप कह सकते हो मैं पागल हो गया, हां खुद भी स्वीकार करता हूं, क्योंकि हर क्षण, हर स्थान और हर व्यक्ति में लक्ष्य को खोजने लगता हूँ। इस पर लोग मुझे पागल समझने लगते हैं, हाँ काफी हद तक सच भी, क्योंकि उनकी निगाहों में पागल हूँ और मैं अपनी नजर में पागलपन के उस स्तर तक जाना चाहता हूँ जहाँ लोगों की बातों का मुझपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हाँ मैं बोलता भी कम लेकिन उनकी बातों को मैं नजर अंदाज कभी करता और जो हमारे लक्ष्य में उनकी बातें सहायक हैं उनको मैं ग्रहण कर लेता हूं। कह सकते हैं आप की मुझे अपने लक्ष्य से मोहब्बत हो गई इस कारण मुझे किसी और से मोहब्बत नहीं होती । मुझे कोई भी वस्तु अब लक्ष्य से इतनी तुच्छ लगने लगी है कि उसके सिवा कुछ नजर नहीं आता।
आप मुझे हाँ पूरी तरह से पागल कह सकते और खुद से दूर भी रख सकते हैं , लेकिन आखिर में कहना चाहता हूँ, हाँ मैं पागल हो गया और ये पागलपन तब तक रहेगा बनाये रखना चाहता हूँ, लक्ष्य मिलने तक।
पगालों का न ठौर है न ठिकाना है
वो निकले हैं इस कदर घर से
कि पाने को लक्ष्य पागलपन से परे जाना हैं

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

नहीं पता प्रेम क्या, बस प्रेमी हूँ



जब वो कोयल सी बोलती है तो मानो एक शरीर और आत्मा में हलचल होने लगती है, उसके रहने पर उसको नहीं देखता , पर न रहने पर रिक्त स्थान को कइयों बार देखता हूँ और बस देखते रहना चाहता हूँ। हमें नहीं पता हमारा उससे क्या है, लेकिन फिर उसे क्यों देखता हूँ, शायद मैं उसे चाहने लगा हूँ। हमें नहीं पता वह किधर है और न ही मुझे पता मैं उसका पहला या दूसरा प्रेम हूँ । बस एक दरिया से मिलके दूसरा दरिया अब समुन्दर बन बैठा है। छोड़ने को सबकुछ छोड़ दिया जाये, लेकिन कोई ये भी तो बताये ये दर्द किस बाजार में बेचा जाए। लोग कहते हैं दूसरे से प्रेम होगा तो वह याद नहीं रहेगा, परन्तु जब दूसरे से होगा तब न, जब उसको विस्मृत करूँगा तब न। और हाँ जब इस हृदय के द्वार पर दूजा प्रवेश करेगा तो वो भी उसकी यादों से दो चार होगा, शायद प्रेम को देखकर वो लौट ही जाये। फिर सोचता हूं छोड़ों चलो उसकी यादों के सहारे ही ये जीवन काटा जाये और उसको धड़कन बना के विरह में जीवन जिया जाए।

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

वो मिली क्यों


विनायक अपने गांव से पहली बार किसी बड़े शहर के लिए निकल रहा था तो उसके मां—बाप और भाई—बहन के साथ गांव वाले उसे स्टेशन तक छोड़ने आए। मां जाते—जाते उससे बोल गई दूसरे—तीसरे दिन बात कर लिया करना।
विनायक आंखों में बड़े सपनों को लेकर देश की राजधानी दिल्ली को चल पड़ा। करीब सात से आठ की यात्रा करके जब वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा तो वह पहले वहां की चका चौंध के प्रति आकृष्ट हो गया। इसी बीच कूली आकर बोला, सर 150 रुपये लेंगे आपका सामान उस पार पहुंचा देंगे, पहले विनायक ने अपनी जेब में हाथ डाला और घर से मिले पैसों को देखा और फिर जेब में रखकर बोला, नहीं मैं खुद ही लेकर चला जाऊँगा और उसने अपना सामान उठाया और चल दिया। एक—दो दिन उसने किसी तरह घर से मिले पैसों से गुजारा कर लिया, लेकिन जब उसके पास सिर्फ रहने तक के पैसे बचे तो वह नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के लिए जाने लगा। हर जगह से कहा जाता एक छोटे गांव का लड़का इतनी बड़ी कंपनी में कैसे काम करेगा रे तू और ऊपर से तेरे को अंग्रेजी भी बोलनी नहीं आती है। और फिर वह लौट के आ जाता। इस तरह उसने कई दिनों तक उसने भूखे भी बिताए।
एक दिन आखिरकार विनायक को एक कंपनी में नौकरी मिल जाती है और वह काम करने लगता है। इस बीच वह घर से बात भी नहीं कर पाता है। अचानक एक दिन मां का फोन आ जाता है—कैसा है पुतवा रुआंसू होके जब मां बोलती तो उसका कालेजा फट जाता, लेकिन एक पल खुद को संभालकर बोलता अम्मा हम यहां पर ठीक हैं और घर पर सब ठीक है। हां पुतवा सब ठीक है अपना खयाल रखना फोन रखत हैं। फोन कटते ही विनायक कमरे की ओर भागता है और जाके कमरा में खुद को बंद करके खूब रोता है।
विनायक की नौकरी रोज की तरह चलने लगती है और वह भी काम में रम जाता है। एक दिन उसकी मुलाकात कंपनी में ही काम करने वाली रीना नाम की लड़की से होती है। एक—दूसरे के बारे में दोनों पूछते हैं। और फिर दोनों की आपसी बात होने लगती है। रीना भी उससे घुल—मिल जाती है। दोनों की अब फोन पर भी बातचीत होने लगती है। कभी—कभी विनायक बातों—बातों में कह भी देता आपकी शर्ट अच्छी लग रही है रीना भी मुस्कुरा कर कह देती उतार दूं और दोनों जोर—जोर से हंसने लगते। यह सबकुछ चलता रहता है। एक दिन विनायक हिम्मत जुटाकर वह रीना से पूछ लेता है कि तुम मुझसे प्रेम करती हो, इस पर रीना तेज आवाज में कहती ओ मॉय गॉड तुम तो जानते हो मैं पहले से दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हूं तुरंत विनायक बात को पलटते हुए मैं तो मजाक कर रहा हूं मुझे पहले से पता है आप दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं। यह बात आई गई हो जाती है। फिर से विनायक रोज की तरह काम करने लगता है, लेकिन जब उसे रीना के अतिमहात्वाकांक्षी होने के बारे में जब पता चलता है तो वह बहुत आहत होता है, क्योंकि मां के बाद अगर वह किसी से प्रेम करता है तो वही है। और एक दिन विनायक अपनी घर की जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के लिए और अपने प्रेम को जिंदगी के सफर में मिले एक यात्री के तरह उसकी यादों को संजोकर और ताउम्र एक दर्द को लिए दूसरे शहर चल देता है।

रविवार, 2 दिसंबर 2018

मेरी तनहा ख्वाबों का वो भी एक सिला है


#जिंदगी के सफर का अपना ही मजा
कहीं ख़ुशी तो कहीं ग़मों का सिला है
मिलते मिलते कल तलक जिनसे
वो आज किसी और के गले में पड़ा है
सोच के हमने उसे कुछ और गले लगाया
मेरी तनहा #ख्वाबों का वो भी एक सिला  है
दर्द में ही अब मजा आता है
बिना दर्द के सब सूना सा लगता है

बुधवार, 28 नवंबर 2018

‌मेट्रो सिटी


‌यहाँ जिंदगी सिर्फ दौड़ती है। न यहाँ न कोई अपने से खुश है न दूसरे की ख़ुशी में शरीक होना चाहता है। रात होते ही प्रेमी युगल यहाँ दिखाना आम बात है। पर सच प्रेम सिर्फ उनकी कामनाओं तक सीमित रहता है, जो आज किसी और के साथ तो कल किसी और के साथ होता है। यहाँ प्रेमिका और प्रेम एक छलावा है जो सिर्फ अपनी महत्वाकांक्षा और अपनी जरूरत के अनुसार बदलता है। यहाँ चमड़ी की कीमत तक लगती है वो भी मजबूरी में नहीं अपनी इच्छाओं की पूर्ति के
‌ लिए। यहाँ ग्रुपों पर सब उपलब्ध है। घुटनों से नीचे तक कपड़े कम ऊपर ज्यादा रहते हैं। ऊंची ऊंची बिल्डिंगों में रातों को महफ़िल सजती है फिर बजती भी सुरीली रातों में। सिगरेट की कश मारतीं  युवतियां और शाम ढले पुरुष मित्र के साथ चेस करती शराब के ग्लास के युवतियां खूब मिलेंगी।
‌चेहरे की खूबसूरती भी आँखों का धोखा भी हो सकता है। 

रविवार, 25 नवंबर 2018

राधे का प्रेम

श्रीहरि:
“उद्धव काका!!!....मुझे आज आपसे कुछ पूछना है..... ये बताइए....मेरी १६१०८ माताओं में... किसने पिता जी के ह्रदय में सबसे प्यारा स्थान प्राप्त किया है???” प्रद्युम्न जी ने अपने सोलहवें जन्मदिन पर उद्धव जी से पूंछा...

बताइए न...उद्धव काका!!!.... मुझे पता है...इस प्रश्न का हल.... केवल आपके पास ही होगा...” उद्धव जी के शांत ही रहने पर प्रद्युम्न उनसे जिद्द करने लगे....

उद्धव जी बड़ी ही दुविधा में फंस गए... आखिर वे प्रद्युम्न को कैसे बताएं ...की उसके प्रश्न का हल...उसकी १६१०८ माताओं से भी परे है...

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा... “उनमे से किसी को भी नहीं....कृष्ण के ह्रदय का सबसे प्यारा स्थान तो किसी और को ही प्राप्त है... वे कृष्ण की स्वामिनी ...श्री राधा रानी हैं...”

“क्या??? श्री राधा रानी???.... ये कौन हैं???....काका...!!!” प्रद्युम्न जी आश्चर्य चकित होने के साथ साथ कुछ नाराज़ भी हुए...

“हाँ वत्स!!... ब्रज की एक बाला.....एक गोपी....श्री राधे....अब मै तुम्हे बताता हूँ की वे कौन हैं... और कैसे वे कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं....” उद्धव जी बोले...

एक बार की बात है....तुम्हारे पिता जी की तबियत इतनी बिगड़ गयी...की कोई भी वैध उनका इलाज़ कर पाने को सफल ना हुआ... और हम सब को लगने लगा...की ये हमारा कृष्ण के साथ आखिरी समय हो सकता है... “ उद्धव जी उस घटना को याद करते करते व्याकुल हो गए....

प्रद्युम्न ने उन्हें कुछ जल दिया और पूंछा... “फिर काका???”

उद्धव जी ने आगे बताया.... “द्वारकाधीश ने स्वयं अपने इलाज़ का उपाय बताया... और सबसे उनका वह उपाय करने को पूंछा..... लेकिन तुम्हे पता है प्रद्युम्न .....१६१०८ रानियों में कोई भी उनका वह उपाय करने को राजी ना हुआ...जिस से भगवान् कृष्ण ठीक हो सकते थे... उनमे से कोई भी वह उपाय करके बड़े पाप का जिम्मेदार नहीं बनना चाहता था.....”

प्रद्युम्न ये सुनकर आश्चर्य में पड़ गए... “फिर पिता जी के प्राण किसने बचाए...काका???...जल्दी बताइए...”

“श्रीराधे ने....प्रद्युम्न....!!!.... वो श्री राधे ही थीं....जिन्होंने उस बड़े पाप का जिम्मा अपने सर लिया... और यही प्रमाण है....की वे कृष्ण को सर्वाधिक प्रिय हैं...जो उन्होंने कृष्ण के प्राणों की रक्षा के लिए... आपना लोक-परलोक सब न्योछावर कर दिया....”उद्धव जी ने प्रसन्न होकर बताया...

“आखिर पिता जी ने ऐसा कौन सा उपाय बताया था...काका...??? जो ब्रज की वो बाला ही कर सकी.... और जिसे करने का साहस ...पाप से बचने के लिए मेरी किसी माता ने नही किया... ???” प्रद्युम्न ने आँखों मजाल भरकर पूंछा....

उद्धव जी ने श्री राधे के कमल-चरणों का ध्यानं करते हुए आँखें बंद कर ली...और बताया... “अपने चरणों का जल!!!....प्रद्युम्न... श्रीकृष्ण ने अपनी किसी भक्त के धूल भरे चरणों का जल ही अपनी बिमारी का उपाय बताया था ...और श्री राधे ने ही अपना चरणामृत पाप की परवाह किये बिना... भगवान् कृष्णा को पीने के लिए भेज दिय था....अब तुम्ही बताओ....भला किसी और को कृष्ण के ह्रदय में सबसे प्यारा स्थान कैसे प्राप्त हो सकता है???”

प्रद्यम्न जी श्री राधारानी की जय जय कार करते हुए.... उनके दर्शन को....वृन्दावन को भाग चले....

प्रेम तो बंधनमुक्त कर देता है


प्रेम निष्कपट, निश्छल और यदि भावपूर्ण तो वह इंसान को पूरी तरह से स्वतंत्र कर देता है। उसमें फिर किसी भी तरह का बंधन नहीं होता और न ही किसी भी चीज की लालसा रहती है। वह अनंत काल में स्वतंत्र हो जाता है।
प्रेम न रूप देखता है न धन—धान्य देखता और न ही उसको प्रेम के सिवाय कुछ सामने वाले से पाने की इच्छा रहती है।
प्रेम तो एक होता है, लेकिन लोग उसे दो इंसान की जिस्मों को जोड़कर देखता है। उसे नहीं पता होता है कि प्रेम का मतलब ही एक होना उसमें दो का सवाल ही नहीं उठता है।
प्रेम होने पर ईश्वर का भी आशीर्वाद मिलता है। जैसे बच्चे को अपनी मां से पहला प्रेम होता है उसके बाद बहन—बंधु और प्रेमिका से हो सकता है, लेकिन क्या प्रेम हमेशा पाने की इच्छा से होता है तो कतई नहीं।
प्रेम होने पर किसी प्रकार का मोह, माया ग्रसित नहीं कर सकती है, वह तो प्रेम होने पर और भी आनंदित रहने लगता है, क्योंकि जो अभी तक वह अपूर्ण रहता है प्रेम उसे पूर्ण कर देता है। और वह पूर्णानंद में डूब जाता है।
प्रेम को बल अथवा धन से नहीं पाया जा सकता है। प्रेम को तो प्रेम से ही पाया जा सकता है।

सोमवार, 19 नवंबर 2018

कभी कभी खुद के लिए मुस्कुरा लिया करो


तुम अपनी अच्छाई रख लो
हम अपनी बुराई रख लेते
मिलो तो कुछ दिल की भी बता दिया करो
सारी जलन सिर्फ सिगरेट पर मत निकल दिया करो
अगर मानते हो हमें अपना हमनवी तो हमसे भी कुछ बता दिया करो
माना की हम उनमें नहीं नहीं हो सकते
पर दुश्मन समझ कर ही गरिया दिया करो
अंदर से जो समंदर दबाये बैठे हो
साथ बैठे तो उसे दरिया बना दिया करो
ठीक है तुम्हे हमारी किसी मोड़ पर जरूरत न पड़े
पर एक तिनके की तरह याद तो रख लिया करो
माना तुम्हारे अपने  बहुत से सिद्धांत है
पर कभी सिद्धांतों से हटकर भी चल लिया करो
ये जो सभी की ख़ुशी के खातिर सारा जहर खुद पीते हो
कभी कभी खुद के लिए मुस्कुरा लिया करो

सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

यहां पर है धरती का देवलोक


कल्‍पना कीजिए कि आप ऐसी जगह पर हों जहां चहुंओर उजाला ही दिखे और दिन व रात में अंतर करना आपके के लिए मुश्किल हो जाए तो समझ लीजिए की आप भगवान शंकर की नगरी काशी में हैं । साथ ही गंगा तट पर उतरे देवलोक की छवि कैसी होती होगी। हमारी कल्‍पना से भी सुंदर । देव दीपावली देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी पर्यटक काशी पहुंचते हैं । पर्यटक यहां की रीति रिवाजों को उम्र भर के लिए कैद कर लेना चाहते हैं । उल्‍लेखनीय है कि दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली के दिन गंगा के घंटों को सजाया जाता है । काशी में गंगा के घाटों पर दीपों का अद़भुत जगमग प्रकाश देवलोक का निर्माण कर देता है । यह उत्‍सव काशी की मुख्‍य पहचान बन गया है

गुरुवार, 23 अगस्त 2018

काश वो मिलते और शुक्रिया कह सकता

अमावस की रात थी और उसकी आंखों से जैसे कुछ टपक रहा था मैंने उसे बहुत देखने की कोशिश की लेकिन उस अमावस की रात में इतना अंधेरा था कि शायद ही मैं उसका चेहरा देख पाता अब बस कुछ ही देर बचे थे हमारी बस को आने में और मैं अपने मोबाइल में व्‍यस्‍त था इतनी देर में बस आई और मैं चल दिया हमें क्‍या पता था कि जिस शहर में मैं घूमने आया हूं वह हमें कुछ देने को आतुर है हां लेकिन बस की लाइट में मैंने चलते चलते उसके चेहरे को आखिर बार देखा था मैं अपने गांव आ गया बाकि रोज की तरह सब चलने लगा फिर एक दिन हमारे मोबाइल पर काल आई अजनबी सी आवाज मैंने पूछा किससे बात करनी है जवाब मिला रिषभ से इतना सुनते ही मैं चौंक गया फिर मैंने कहा हां रिषभ बोल रहा हूं और हमारा नंबर आपको कहां से मिला उसने कहा कि जब आप दिल्‍ली आए थे और बस का इंतजार कर रहे थे उसी बगल की सीट पर मैं बैठी थी आप तो चले गए लेकिन अपने पर्स को सीट पर ही भूल गए जब मैं घर को चल रही थी तभी मेरी नजर आपकी सीट पर पडी यहां आपका पर्स पडा था मैंने उसमें देखा तो आपके जरूरी कागज थे तो हमने सोचा आपके दिए पते पर कोरियर कर दूं और आपको बता दूं बस यही बताने के लिए फोन किया था कि आपका पर्स भेज दिया और उसने फोन रख दिया फोन कटते ही मैं कुछ देर तक सोचता रहा अजनबी शहर में ऐसे भी लोग होते हैं आज मैं सोचता हूं उनसे मुलाकात होती तो उनका शुक्रिया अदा कर पाता 

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

हां मैं वेश्‍या हूं, हां मैं वेश्‍या हूं

हां मैं #वेश्‍या हूं, हां मैं वेश्‍या हूं
तुम जैसे रोज आते हैं मेरे #कोठे पर अपनी #हवस मिटाने
कुछ मानसिक विक्रतियों से घिरे तो कुछ अपना दर्द भुलाने
एक नहीं तुम जैसे अनेक के साथ रोज हम बिस्‍तर होती हूं
हम सिर्फ अपना जिस्‍म बेचती हूं और तुम हर रोज अपनी आत्‍मा बेंच कर जाते हो
माहवारी में भी तुम जैसे दर्द को नहीं समझ पाते और हम उसे दवा की तरह पी जाती हूं
मेरे यहां धर्मों का आडम्‍बर नहीं होता
कोठे के बाहर सारे धर्म छूट जाते हैं  
मेरे यहां एक से आते हैं जिनकी औकात एक ग्राहक सी होती है
और फिर जाते जाते वेश्‍या गाली भी दे जाते हो