शहर-दर-शहर बदल जाते हैं
लोग मिलते हैं और बदल जाते हैं
नहीं बदलती हैं तो बस वो यादें
जो वर्तमान से अतीत में खींच ले जाती हैं
दिसंबर 2011 साइकिल से चार किलोमीटर चलाकर अपनी इंस्टीट्यूट पहुंचा। आज कुछ ज्यादा उत्साहित था, क्योंकि मेरी नई अध्यापिका आज हम लोगों से रू-ब-रू होने वाली थी। हम लोगों का बैच सुबह 7:30 बजे का और ठंड का मौसम। हम सभी मैं और मेरे दोस्त कक्षा में उपस्थित हुए और शुरू हुआ परिचय का दौर। इसके सभी ने अध्यापिका जी से एक गाने का निवेदन किया, लेकिन उन्होंने एक शर्त ये रख दी कि मैं सभी के गाने के बाद गाऊंगी। अब सवाल यह था कि पहले गाए कौन? पहले हमी को गाना पड़ गया और इसके बाद मेरे दोस्तों ने बारी-बारी सके गीत की प्रस्तुति दी। इसके बाद हमारी अध्यापिका जी एक दिन आप हमको मिल जाएंगे की प्रस्तुति दी। कंप्यूटर की कक्षाएं लगभग दो महीने तक चलीं और एक हम लोगों को पता चला कि अध्यापिका जी संस्थान छोड़ के कहीं नई जगह जा रही हैं हम लोगों में उदासी छा गई। ऐसा नहीं कि उनकी नई पारी से हमारे दोस्तों और हमें खुशी नहीं थी। थी, बेशक, लेकिन उनका एक दोस्त की तरह व्यवहार हम लोगों के उदासी का कारण था। हम सब जब वो पढ़ाती थी तो इतने सवाल दाग देते थे कि उनकी जगह कोई और होता तो शायद क्लास छोड़कर चला जाता, लेकिन वो बारी-बारी से सबके सवालों के जवाब देती।
आप उनको देखकर नहीं बता सकते थे कि वे अध्यापिका है। एक दुबली-पतली सी लड़की और वह भी पंजाब और हमारे नवाबों के शहर में पढ़ाती हो। अक्स वो कह देती थी तु सवाल पूछने से पहले मुस्कुराने क्यों लगते हो इसके आगे मैं कुछ बोल नहीं पाता था। वो बोलती थी कि तुम लोगों सवाल करने की कोशिश ही नहीं करते।
आखिर वो दिन आ ही जब हम लोगों ने उनको विदाई दी। हम सभी ने डिमांड की कि जलेबी के साथ समोसे और दही आना चाहिए। उन्होंने हम सभी की मांग मान ली। सभी ने खूब लुत्फ उठाया। उन्होंने सभी को जलेबी जो एक बार वितरित करने के बाद बच गई थी दोबारा देने लगी तो सभी ने हमारी तरफ इशारा किया और अध्यापिका जी बोली एक और लो और मैं न करता रहा। आज सोचता हूं ले लिया होता तो कुछ और मिठास रह जाती। बस, आप जहां भी रहे खुश रहे। हम लोग आपको को याद करते रहेंगे।
लोग मिलते हैं और बदल जाते हैं
नहीं बदलती हैं तो बस वो यादें
जो वर्तमान से अतीत में खींच ले जाती हैं
दिसंबर 2011 साइकिल से चार किलोमीटर चलाकर अपनी इंस्टीट्यूट पहुंचा। आज कुछ ज्यादा उत्साहित था, क्योंकि मेरी नई अध्यापिका आज हम लोगों से रू-ब-रू होने वाली थी। हम लोगों का बैच सुबह 7:30 बजे का और ठंड का मौसम। हम सभी मैं और मेरे दोस्त कक्षा में उपस्थित हुए और शुरू हुआ परिचय का दौर। इसके सभी ने अध्यापिका जी से एक गाने का निवेदन किया, लेकिन उन्होंने एक शर्त ये रख दी कि मैं सभी के गाने के बाद गाऊंगी। अब सवाल यह था कि पहले गाए कौन? पहले हमी को गाना पड़ गया और इसके बाद मेरे दोस्तों ने बारी-बारी सके गीत की प्रस्तुति दी। इसके बाद हमारी अध्यापिका जी एक दिन आप हमको मिल जाएंगे की प्रस्तुति दी। कंप्यूटर की कक्षाएं लगभग दो महीने तक चलीं और एक हम लोगों को पता चला कि अध्यापिका जी संस्थान छोड़ के कहीं नई जगह जा रही हैं हम लोगों में उदासी छा गई। ऐसा नहीं कि उनकी नई पारी से हमारे दोस्तों और हमें खुशी नहीं थी। थी, बेशक, लेकिन उनका एक दोस्त की तरह व्यवहार हम लोगों के उदासी का कारण था। हम सब जब वो पढ़ाती थी तो इतने सवाल दाग देते थे कि उनकी जगह कोई और होता तो शायद क्लास छोड़कर चला जाता, लेकिन वो बारी-बारी से सबके सवालों के जवाब देती।
आप उनको देखकर नहीं बता सकते थे कि वे अध्यापिका है। एक दुबली-पतली सी लड़की और वह भी पंजाब और हमारे नवाबों के शहर में पढ़ाती हो। अक्स वो कह देती थी तु सवाल पूछने से पहले मुस्कुराने क्यों लगते हो इसके आगे मैं कुछ बोल नहीं पाता था। वो बोलती थी कि तुम लोगों सवाल करने की कोशिश ही नहीं करते।
आखिर वो दिन आ ही जब हम लोगों ने उनको विदाई दी। हम सभी ने डिमांड की कि जलेबी के साथ समोसे और दही आना चाहिए। उन्होंने हम सभी की मांग मान ली। सभी ने खूब लुत्फ उठाया। उन्होंने सभी को जलेबी जो एक बार वितरित करने के बाद बच गई थी दोबारा देने लगी तो सभी ने हमारी तरफ इशारा किया और अध्यापिका जी बोली एक और लो और मैं न करता रहा। आज सोचता हूं ले लिया होता तो कुछ और मिठास रह जाती। बस, आप जहां भी रहे खुश रहे। हम लोग आपको को याद करते रहेंगे।
2 टिप्पणियां:
Kya baat hai bhai shahab
Kya baat hai bhai shahab
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