शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

गुस्सा

एक दिन मेरा दोस्त विशाल जिद करके अपने साथ बीवी से मिलाने ले आया।
विशाल : लो आ गया रेस्टोरेंट
विशेष : ये कहां ले आए मुझे
विशाल : सही जगह, जनाब
विशेष : मुझे तो नहीं लगता
विशाल : अन्दर आओगे तभी तो पता चलेगा
विशेष : ठीक है
विशाल और विशेष दोनों रेस्टोरेंट में प्रवेश करते हैं।
विशाल : तू यही घूम मैं अभी आता हूं
विशेष : लेकिन तुमने कहा था
विशाल : बीच में टोकते हुए हां, मालूम है। पहले घूम तो लो
विशेष : घूमने लगा, घूमते-घूमते एक सीट पर उसकी नजर पड़ी जिस पर एक युवती छरहरी काया की सांवली सी बैठी कुछ पढ़ रही है।
विशाल :  आकांक्षा तुम यहां हो मैं तुम्हे अन्दर ढूंढ रहा हूं। आओ मैं अपने अजीज दोस्त से मिलवाता हूं।
आकांक्षा : कौन
विशाल : आज बहुत दिनों बाद पकड़ में आया है। उसको साथ ही लेकर यहां चला आया हूं
आकांक्षा : कहां है आपके दोस्त। दिख तो रहे नहीं
विशाल : पता नहीं कहां चले गए। यहीं तो थे अभी
आकांक्षा : कोई एक नौजवान फव्वारे की तरफ घूम रहे थे
विशाल : हां वहीं होगा, विशेष तुम यार यहां हो आओ मिलवाते हैं जिनसे मिलवाने लाए थे
विशेष अपने दोस्त के साथ उसके पीछे-पीछे चल पड़ा
अब वो मुझे उसी युवती के पास ले गया जिसे विशेष ने कुछ देर पहले देखा था
आकांक्षा : ये ! अभी तो फव्वारे तरफ घूम रहे थे
विशेष : नमस्ते !
आकांक्षा नमस्ते ! आइये बैठिये
विशाल : ये रेस्टोरेंट जिसे तुम कह रहे थे इन्हीं का है। यहीं रहती है
नौकरानी : दीदी जी, क्या लाए, पहले पानी या फिर चाय
आकांक्षा : चाय ही ले आओ फिर दोपहर का खाना खाकर दोनों लोग जाएंगे
विशाल और आकांक्षा विशेष से बात करने लगे
नौकरानी : दीदी जी ! चाय
आकांक्षा : हां रख दो
नौकरानी : चाय रखकर चली जाती है
आकांक्षा : आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं
विशेष : ऐसी कोई बात नहीं
आकांक्षा : तो फिर शांत क्यों हैं
विशाल : ये ऐसे ही पहली दफा शांत रहता है
आकांक्षा : अच्छा
आकांक्षा, विशाल और विशेष बातों में मसगुल रहते हैं कि दोपहर हो जाती है
आकांक्षा : अच्छा चलिये खाना खा लीजिए आप दोनों। अंजू (नौकरानी).......
नौकरानी :  जी दीदी जी !
आकांक्षा : खाना लगा दे
आकांक्षा, विशाल और विवेक खान खा ही रहे होते हैं कि किसी बात को लेकर विशाल और आकांक्षा में तीखी बहस होने लगती है
आकांक्षा : ये कैसा बर्ताव है विशाल
विशाल : तू शांत रह
आकांक्षा : क्यों शांत रहूं। बेवजह चिल्लाए जा रहे हो
विशाल : शांत नहीं तो यहां से चली जा
आकांक्षा : हां ! जा रही हूं और फिर कभी नहीं आऊंगी। देखिये विशेष जी ये अक्सर ऐसा करते हैं। मैं अपनी बाप की दौलत छोड़कर आई किसके लिए और ये हैं कि आए दिन झगड़ते रहते हैं
विशेष : विशाल भाई हुआ क्या
विशाल : कुछ नहीं याद दिमाग खराब है
कुछ देर बाद धड़ाम की आवाज आती है जब तक विशाल और विशेष दौड़कर देखते तब तक आकांक्षा ने छत से कूदकर जान दे दी थी
विशाल : ये मैंने क्या किया कर दिया। जोर-जोर से रोने लगा। गुस्से में मैंने उसे बुरा-भला कहा। एक पल में गुस्से ने आंखों के सामने सब बिखेर दिया था।
विशाल के पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं था। एक चश्मदीद गवाह जो केवल बुत बना यह सब देख रहा था वह विशेष कुछ नहीं कर पाया

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