दर्द का अपना समंदर भर गया
अपना दर्द हमें दे गया कोई
रोते हुए हम आज अपने घर से निकले
जाने कब लौटेंगे कदम मेरे
रोटी की चाह ने अपनों से दूर कर दिया
जिन्हें मंजिल समझ हम मुसफिर बने
जाने कहां कब मिलेगा वह
यहीं सोचकर मुसफिर बढ़ता रहा...
अपना दर्द हमें दे गया कोई
रोते हुए हम आज अपने घर से निकले
जाने कब लौटेंगे कदम मेरे
रोटी की चाह ने अपनों से दूर कर दिया
जिन्हें मंजिल समझ हम मुसफिर बने
जाने कहां कब मिलेगा वह
यहीं सोचकर मुसफिर बढ़ता रहा...
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