गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

कि सपनों में आके सताते रहे हैं

यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं
दिल के दरवाजे पर दस्तक देकर
अजनबी से हमको चिढ़ाते रहे हैं
बाहों में मेरे तेरे वे लम्हे रहे हैं
कि हरपल मुझे गुदगुदाते रहे हैं
एक अजनबी सी दौलत वो मुझको देके
फिर मिलने का बहाना बनाते रहे हैं
न जाने क्यों मुझसे वो रूठ जाते रहे हैं
अकेला समझकर छोड़ जाते रहे हैं
क्या बताऊं वो भी रोते रहे हैं
हमको रोता छोड़ जाते रहे हैं
हसीनाओं की दुनिया में हमे पत्थर समझ
किसी और से वो दिल लगाते रहे हैं
यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं

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