शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
दौलत मिलती है मगर इश्क नहीं मिलता
दर्पण की तरह इश्क मिलता है
पर टिकने वाला इश्क नहीं मिलता
कुछ पल की खुशी में मुकम्मल इश्क भी लगता
टूटते ही इश्क भी बेवफा लगता
रात-दिन इश्क हमकों सताता
मगर चिराग की अंत पर बेवफा ही मिलता
इस जहां में रोज मिलते हैं इश्क के टूटे चेहरे
मगर इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
हो यारो......हो यारो
इस जहां मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

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