शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

फिर क्यों छोड़ जाते हैं हमे मरता इस जमाने में

कौन बांटता एक-दूसरे का दर्द इस जमाने में
सब खोए रहते हैं अपने-अपने अफसाने में
किसी को चार कौड़ी दौलत क्या मिली
भूल जाते हैं बीते हुए लम्हे जमाने में
यहां हर होठों पर खिल उठती है हंसी
अंदर का दर्द कोढ सा बचा रखते हैं जमाने में
हू-ब-हू हम जैसे अनगिनत मिलते हैं
फिर क्यों छोड़ जाते हैं हमे मरता इस जमाने में
बेचैनी इस कदर हमें मारने को दौड़ती
हम हर बार जीत जाते हैं उससे इस जमाने में
हर रोज सुबह जंग होती है मेरी एक नई जिंदगी से
जिंदगी भी हमें छोड़ जाती है इस जमाने के अफसाने में
अब बाबस्ता रहा न कुछ मेरा
अब घुट-घुटकर रोज मरता हूं जमाने में

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

कि सपनों में आके सताते रहे हैं

यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं
दिल के दरवाजे पर दस्तक देकर
अजनबी से हमको चिढ़ाते रहे हैं
बाहों में मेरे तेरे वे लम्हे रहे हैं
कि हरपल मुझे गुदगुदाते रहे हैं
एक अजनबी सी दौलत वो मुझको देके
फिर मिलने का बहाना बनाते रहे हैं
न जाने क्यों मुझसे वो रूठ जाते रहे हैं
अकेला समझकर छोड़ जाते रहे हैं
क्या बताऊं वो भी रोते रहे हैं
हमको रोता छोड़ जाते रहे हैं
हसीनाओं की दुनिया में हमे पत्थर समझ
किसी और से वो दिल लगाते रहे हैं
यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं

शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
दौलत मिलती है मगर इश्क नहीं मिलता
दर्पण की तरह इश्क मिलता है
पर टिकने वाला इश्क नहीं मिलता
कुछ पल की खुशी में मुकम्मल इश्क भी लगता
टूटते ही इश्क भी बेवफा लगता
रात-दिन इश्क हमकों सताता
मगर चिराग की अंत पर बेवफा ही मिलता
इस जहां में रोज मिलते हैं इश्क के टूटे चेहरे
मगर इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
हो यारो......हो यारो
इस जहां मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

मातृभूमि का अपमान मां अपमान

कहते हैं जिस चीज का हम शुरू में विरोध नहीं कर पाते या फिर कहें की छोटी-छोटी चीज का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते। यहां तक कि बहुत से बुद्धजीवी कह देते हैं हम क्या लेना देना तो ये वही लोग हैं कि अपना घर एक दिन लुटते हुए देखते रहते हैं और कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। ऐसा ही माहौल इस समय भारतभूमि में चल रहा है। आतंकवाद की जननी पाकिस्तान का आर्थिक और सैन्य ताकत को हमेशा दूध पिलाने वाला चीन जो कि अपने वीटो के पवार पर मसूद अजहर जैसे आतंकी को आतंकी नहीं घोषित होने देता है। अगर प्रत्येक भारतीय चीनी निर्मित सामान का बहिष्कार करें तो आर्थिक रूप से कमजोर भी होगा और उसकी पाकिस्तान को दूध पिलाने की समक्षता भी कमजोर हो जाएगी। हां, आप अगर पहले से चीनी निर्मित सामान उपयोग कर रहे हैं तो करिये, लेकिन आगे से तो ऐसा न करने की ठाने। क्योंकि एक सैनिक की जान से प्यारी हमारी उपभोग की चीजें नहीं हैं। और हां, यह जो चीनी मीडिया बौखलाहट में बोल रहा है यह मातृभूमि का अपमान है ही साथ ही मां का भी अपमान है।

आधुनिकता के दौर में सब अंधे हो जाएंगे

हर गली से आवाज उठेगी
हर बस्ती जलेगी
अपने अपनों में स्वार्थ खोजेंगे
आधुनिकता के दौर में सब अंधे हो जाएंगे
तब देखना मेरे देशवासियों
देश के टुकड़े होते देखे जाएंगे

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

LIPSTICK UNDER MY BURKHA | Official Teaser Trailer | Konkona Sensharma, ...



लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का फिल्म जो बताती है मुस्लिम महिलाओं की दो जिंदगी के बारे में किस तरह से अपनी आजादी को जीती हैं।

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

गुस्सा

एक दिन मेरा दोस्त विशाल जिद करके अपने साथ बीवी से मिलाने ले आया।
विशाल : लो आ गया रेस्टोरेंट
विशेष : ये कहां ले आए मुझे
विशाल : सही जगह, जनाब
विशेष : मुझे तो नहीं लगता
विशाल : अन्दर आओगे तभी तो पता चलेगा
विशेष : ठीक है
विशाल और विशेष दोनों रेस्टोरेंट में प्रवेश करते हैं।
विशाल : तू यही घूम मैं अभी आता हूं
विशेष : लेकिन तुमने कहा था
विशाल : बीच में टोकते हुए हां, मालूम है। पहले घूम तो लो
विशेष : घूमने लगा, घूमते-घूमते एक सीट पर उसकी नजर पड़ी जिस पर एक युवती छरहरी काया की सांवली सी बैठी कुछ पढ़ रही है।
विशाल :  आकांक्षा तुम यहां हो मैं तुम्हे अन्दर ढूंढ रहा हूं। आओ मैं अपने अजीज दोस्त से मिलवाता हूं।
आकांक्षा : कौन
विशाल : आज बहुत दिनों बाद पकड़ में आया है। उसको साथ ही लेकर यहां चला आया हूं
आकांक्षा : कहां है आपके दोस्त। दिख तो रहे नहीं
विशाल : पता नहीं कहां चले गए। यहीं तो थे अभी
आकांक्षा : कोई एक नौजवान फव्वारे की तरफ घूम रहे थे
विशाल : हां वहीं होगा, विशेष तुम यार यहां हो आओ मिलवाते हैं जिनसे मिलवाने लाए थे
विशेष अपने दोस्त के साथ उसके पीछे-पीछे चल पड़ा
अब वो मुझे उसी युवती के पास ले गया जिसे विशेष ने कुछ देर पहले देखा था
आकांक्षा : ये ! अभी तो फव्वारे तरफ घूम रहे थे
विशेष : नमस्ते !
आकांक्षा नमस्ते ! आइये बैठिये
विशाल : ये रेस्टोरेंट जिसे तुम कह रहे थे इन्हीं का है। यहीं रहती है
नौकरानी : दीदी जी, क्या लाए, पहले पानी या फिर चाय
आकांक्षा : चाय ही ले आओ फिर दोपहर का खाना खाकर दोनों लोग जाएंगे
विशाल और आकांक्षा विशेष से बात करने लगे
नौकरानी : दीदी जी ! चाय
आकांक्षा : हां रख दो
नौकरानी : चाय रखकर चली जाती है
आकांक्षा : आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं
विशेष : ऐसी कोई बात नहीं
आकांक्षा : तो फिर शांत क्यों हैं
विशाल : ये ऐसे ही पहली दफा शांत रहता है
आकांक्षा : अच्छा
आकांक्षा, विशाल और विशेष बातों में मसगुल रहते हैं कि दोपहर हो जाती है
आकांक्षा : अच्छा चलिये खाना खा लीजिए आप दोनों। अंजू (नौकरानी).......
नौकरानी :  जी दीदी जी !
आकांक्षा : खाना लगा दे
आकांक्षा, विशाल और विवेक खान खा ही रहे होते हैं कि किसी बात को लेकर विशाल और आकांक्षा में तीखी बहस होने लगती है
आकांक्षा : ये कैसा बर्ताव है विशाल
विशाल : तू शांत रह
आकांक्षा : क्यों शांत रहूं। बेवजह चिल्लाए जा रहे हो
विशाल : शांत नहीं तो यहां से चली जा
आकांक्षा : हां ! जा रही हूं और फिर कभी नहीं आऊंगी। देखिये विशेष जी ये अक्सर ऐसा करते हैं। मैं अपनी बाप की दौलत छोड़कर आई किसके लिए और ये हैं कि आए दिन झगड़ते रहते हैं
विशेष : विशाल भाई हुआ क्या
विशाल : कुछ नहीं याद दिमाग खराब है
कुछ देर बाद धड़ाम की आवाज आती है जब तक विशाल और विशेष दौड़कर देखते तब तक आकांक्षा ने छत से कूदकर जान दे दी थी
विशाल : ये मैंने क्या किया कर दिया। जोर-जोर से रोने लगा। गुस्से में मैंने उसे बुरा-भला कहा। एक पल में गुस्से ने आंखों के सामने सब बिखेर दिया था।
विशाल के पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं था। एक चश्मदीद गवाह जो केवल बुत बना यह सब देख रहा था वह विशेष कुछ नहीं कर पाया

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

बोतल थी भरी हुई

मैं गुजरा मयखाने के पास से
पिलाने वाला कोई न था
बोतल थी भरी हुई
उसे टटोलने वाला कोई न था

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

मत तरसा अब इनको मेरी बुलबुल

तेरे आँखों की चाँदनी होठों की लिपस्टिक 
गर्दिश में हैं तेरे चाहने वाले 
मत तरसा अब इनको मेरी बुलबुल
खोल दो दिल के केवांडे

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

डूबने को चन्द्रमा अपनी चरम पर है



रात में बैठा मुसाफिर सुन रहा था कुछ
की आहट कौन सी उजाले की आई है
वो चुपचाप बैठा देख रहा था दब
की रात ढलने को उस ओर देख रहा हूँ मैं
की मेरा बचपन भी शामों की हुड़दंगियों में बीता था
जो आज मैं बैठा देख रहा हूँ यह सब
बेबस हूँ क़ि कुछ कर नहीं सकता हूँ मैं
की एक उजाले की आस में जवानी डूब जाएगी
डूबने को चन्द्रमा अपनी चरम पर है
किनारे पर जाके कब से मुस्कुरा रहा है वो
फिर उजाले की सुनहरी सुबह आई है
बेबस बैठकर सबकुछ देख रहा हूँ मैं।


शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

हम अपने हाथों मेँ खंजर नहीं रखते

कश्तियों को साहिल से लड़ने मेँ मजा आता है
हमको ज़िन्दगी से जीतने मेँ मजा आता है
दिन रात हमारे दुश्मन हमे मात देने की सोचते रहते हैँ
उनकी इस बेचैनी से हमे हौसला आता है
हम अपने हाथों मेँ खंजर नहीं रखते
मगर वो हैँ अपने दिल मेँ खंजर चुभने की जगह रखते हैँ
ज़िन्दगी मेँ मिलने से वास्ता बस इतना सा है
हम जैसे ज़िन्दगी के सफर मेँ मिलते तो हैँ

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

दर्द का अपना समंदर भर गया

दर्द का अपना समंदर भर गया
अपना दर्द हमें दे गया कोई
रोते हुए हम आज अपने घर से निकले
जाने कब लौटेंगे कदम मेरे
रोटी की चाह ने अपनों से दूर कर दिया
जिन्हें मंजिल समझ हम मुसफिर बने
जाने कहां कब मिलेगा वह
यहीं सोचकर मुसफिर बढ़ता रहा...

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही

जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही
पर तोड़ने का हौसला तो लाओ
दिनों-दिन अपना विस्तार वो जो करते हैं
मिट जाने का अहसास वो भी करते हैं
छुप-छुपकर वार वो करते जो करते हैं
खुलकर विरोध न करने का इजहार वो करते हैं
थक हारकर आते हैं वो मेरे दर पर
समझौता करने का प्रस्ताव वो रखते हैं
जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही
पर तोड़ने का हौसला तो लाओ

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

तू शीशमहल में खुश हो के तन्हा है

मेरे आंसू रुक नहीं सकते थे क्या हुआ
तू रुक सकता था तो क्यों नहीं हुआ
मैं यहाँ तन्हा जी के खुश हूँ 
तू शीशमहल में खुश हो के तन्हा है
मैं तो घर से चला था तेरे साथ चलने को
जब बीच राह में तुमने मेरा दामन छोड़ा
आज मैं तन्हा हो के भी खुश हूँ
और तू खुश हो के तन्हा है।

शपथ है उन टूटती चूड़ियों की आवाजों की

शपथ है मां की उन कोखों की, जिन्होंने वीरों को जन्म दिया
शपथ है उन आंसुओं की
शपथ है उन मेहंदी वाले हाथों की
शपथ है उन टूटती चूड़ियों की आवाजों की
शपथ है उन बच्चों की
शपथ है उन पिता की, जिन्होंने बूढ़ापे की लाठी खोई
शपथ है उस बहन की राखी की
शपथ है उन वीरों की शहादत की
शपथ लेता हूं मैं
भविष्य में चाइना के सामानों का उपभोग नहीं करूंगा
#जय #हिन्द जय #भारत

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

हमने तो गिरकर, उठकर चलना सीखा है

मन मेँ धीरज है
तन मेरा शिथिल है
अब पूछों ऐसा क्यों है
पग उसके भी डगमागायेंगे
अब उसको भी गिरना है
हमने तो गिरकर, उठकर चलना सीखा है
उनके तौर तरीकों को हथियाना सीखा है
उनको गुरूर था न गिरने का
उनको अब मैं गिरता देखूँगा
पता नहीं गिरकर वह चल भी पायेंगे
या फिर अपना गुरूर लिये खुद ही मार जायेंगे