मंगलवार, 29 नवंबर 2016

वो जीना क्या जिसमें हर तरह का स्वाद न हो

वो जीना क्या जिसमें हर तरह का स्वाद न हो
चुनौती न हो, दर्द न हो, एहसास न हो, अपनापन न हो,  गम न हो, कुछ खोने पाने की चाह न हो फिर कुछ सोचने का समय न हो, घर हो घर का रास्ता न हो, रास्ता धुंधला दिखे फिर भी हमें मंज़िल साफ दिखे जैसे एहसास न हो तो क्या हो
धन्यवाद ज़िन्दगी

सोमवार, 28 नवंबर 2016

बहती नदी का आज भी किनारा है वो

साथ है मेरे पर अंजान है
वो परिन्दा आजकल बहुत परेशान है
बेबस बेसहारा बेवक्त का मारा है वो
बहती नदी का आज भी किनारा है वो

मंगलवार, 15 नवंबर 2016

हृदय तीर सह जाते हैं

नैन कुछ बोलत नहीं
हृदय तीर सह जाते हैं
आगे चलते-चलते ही वो
पीछे मुड़कर तीर चला जाते हैं
कू-कू कर कोयल वो
सरगर्मी बढ़ा जाती है
पलभर इठलाकर वो
हमको बेचैन बना जाती

रविवार, 13 नवंबर 2016

नोट की चोट पर

नोट की चोट पर
हर पीड़ा है दर्द हुआ
काले कुबेरों को देखो कैसे पेट फाड़े चिल्ला रहे
कुछ बुद्धजीवियों जैसे बोल रहे
कुछ पप्पू जैसे मुस्कुरा रहे
कहते हैं आम जनता त्रस्त है
अरे, इनसे पूछो इनके पेट में क्या दर्द है
क्या खूब नोट चिल्ला पड़ी
मेरे पीछे सारी जनता आ पड़ी
रातों रात क्या हुआ
सारे मुद्दे कहां चले गए
हमे लगता है वे भी नोट बदलने चले गए
सब एक ही सुर में चिल्ला रहे
नोट की चोट पर
नोट की चोट पर

बुधवार, 9 नवंबर 2016

दुनिया के कुछ ऐसे देश जिनकी नहीं है अपनी करंसी

देश-मोनाको
करंसी- यूरो
यूरोपियन कंट्री मोनाको क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे छोटा देश है। देश का क्षेत्रफल 2.02 वर्ग किलोमीटर ही बचा है। कुल जनसंख्या है 37,831 के करीब। देश की पूरी अर्थव्यवस्था फ्रांस पर निर्भर है। इसके चलते यहां यूरो करंसी ही चलती है।
देश - पनामा
करंसी - अमेरिकी डॉलर
पनामा 1903 में कोलंबिया से अलग होकर स्वतंत्र देश बना। पनामा की आर्थिक व्यवस्था अमेरिका पर ही टिकी थी। इसके चलते यहां अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल होता है।
देश - जिम्बाब्वे
करंसी - अमेरिकन डॉलर
2009 में जिम्बाब्वे को भारी मंदी का सामना करना पड़ा। तब इस दक्षिण अफ्रीकी देश ने अमेरिकी डॉलर और दक्षिण अफ्रिकी रैंड जैसी विदेशी करंसी का उपयोग शुरू किया।
देश - इक्वाडोर
करंसी - अमेरिकन डॉलर
1999-2000 में इक्वाडोर को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, जिससे देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत की कमी आ गई। देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई और बैंकिंग क्षेत्र धराशायी हो गए। इसी के चलते इक्वाडोर अन्य देशों को अपना कर्ज भी नहीं चुका पाया। ईक्वाडोर की करंसी पूरी तरह से खत्म हो गई और 2000 में राष्ट्रीय कांग्रेस ने अमेरिकी डॉलर को कानूनी रूप से स्वीकार कर लिया।

देश- कोसोवो
करंसी - यूरो
कोसोवो बाल्कन क्षेत्र में स्थित एक विवादास्पद क्षेत्र है। अब भी इसे सर्बिया संविधान स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देता। हालांकि यूरोप के कई देश इसे स्वतंत्र देश का दर्जा दे चुके हैं। इसी के चलते कोसोवो यूरोपियन करंसी यूरो करंसी का यूज करता है।

देश- नाउरू
करंसी - ऑस्ट्रेलियन डॉलर
यह दुनिया का तीसरा सबसे छोटा देश है और इस देश की अपनी कोई सेना नहीं है। इसका क्षेत्रफल 21.3 वर्ग किलोमीटर में फैला है। कुल जनसंख्या है 10,000 के करीब। जर्मनी ने इस पर कब्जा कर लिया था। फस्र्ट वर्ल्ड वॉर के बाद इसे |ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ब्रिटेन के ‘लीग ऑफ नेशंस मैंडेट एडमिनिस्ट्रेटेड’, द्वारा स्वतंत्र देश घोषित किया गया। तभी से यहां ऑस्ट्रेलियन करंसी का यूज हो रहा है।

देश - लिचटेंस्टेन
करंसी - स्विस फ्रैंक
यूरोपियन कंट्री लिचटेंस्टेट का क्षेत्रफल ही मात्र 160 वर्ग किलोमीटर है। देश की कुल आबादी (2015 की गणना के अनुसार) 36925 है, लेकिन यह प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी के मामले में दुनिया का नंबर वन देश है। फस्र्ट वर्ल्ड वॉर से पहले जर्मनी का इस देश पर कब्जा था। आजादी के बाद ऑस्ट्रिया और स्विटजरलैंड ने इसे स्वतंत्र देश की मान्यता दी। इसके बाद लिचटेंस्टेट ने स्विटजरलैंड की स्विस फ्रैंक करंसी अपना ली।

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

बेवकत बेजुबान सा ये दिल मेरा

बहके कदमें
नजरे झुका लिया करते हैं
तेरे दर्दों से
कुछ लम्हे चुरा लिया करते हैं
बेवकत बेजुबान सा ये दिल मेरा
आपसे मिलते ही नजरे चुरा लिया करते हैं
मैं मुजरिम बन जाऊं
तेरी नजरों के कैद खाने का
इसलिये गलतियां तलाश कर लिया करते हैं

शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

फिर क्यों छोड़ जाते हैं हमे मरता इस जमाने में

कौन बांटता एक-दूसरे का दर्द इस जमाने में
सब खोए रहते हैं अपने-अपने अफसाने में
किसी को चार कौड़ी दौलत क्या मिली
भूल जाते हैं बीते हुए लम्हे जमाने में
यहां हर होठों पर खिल उठती है हंसी
अंदर का दर्द कोढ सा बचा रखते हैं जमाने में
हू-ब-हू हम जैसे अनगिनत मिलते हैं
फिर क्यों छोड़ जाते हैं हमे मरता इस जमाने में
बेचैनी इस कदर हमें मारने को दौड़ती
हम हर बार जीत जाते हैं उससे इस जमाने में
हर रोज सुबह जंग होती है मेरी एक नई जिंदगी से
जिंदगी भी हमें छोड़ जाती है इस जमाने के अफसाने में
अब बाबस्ता रहा न कुछ मेरा
अब घुट-घुटकर रोज मरता हूं जमाने में

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

कि सपनों में आके सताते रहे हैं

यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं
दिल के दरवाजे पर दस्तक देकर
अजनबी से हमको चिढ़ाते रहे हैं
बाहों में मेरे तेरे वे लम्हे रहे हैं
कि हरपल मुझे गुदगुदाते रहे हैं
एक अजनबी सी दौलत वो मुझको देके
फिर मिलने का बहाना बनाते रहे हैं
न जाने क्यों मुझसे वो रूठ जाते रहे हैं
अकेला समझकर छोड़ जाते रहे हैं
क्या बताऊं वो भी रोते रहे हैं
हमको रोता छोड़ जाते रहे हैं
हसीनाओं की दुनिया में हमे पत्थर समझ
किसी और से वो दिल लगाते रहे हैं
यादों में मेरे तेरे साए रहे हैं
कि सपनों में आके सताते रहे हैं

शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
दौलत मिलती है मगर इश्क नहीं मिलता
दर्पण की तरह इश्क मिलता है
पर टिकने वाला इश्क नहीं मिलता
कुछ पल की खुशी में मुकम्मल इश्क भी लगता
टूटते ही इश्क भी बेवफा लगता
रात-दिन इश्क हमकों सताता
मगर चिराग की अंत पर बेवफा ही मिलता
इस जहां में रोज मिलते हैं इश्क के टूटे चेहरे
मगर इस जहां में मुकम्मल इश्क नहीं मिलता
हो यारो......हो यारो
इस जहां मुकम्मल इश्क नहीं मिलता

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

मातृभूमि का अपमान मां अपमान

कहते हैं जिस चीज का हम शुरू में विरोध नहीं कर पाते या फिर कहें की छोटी-छोटी चीज का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते। यहां तक कि बहुत से बुद्धजीवी कह देते हैं हम क्या लेना देना तो ये वही लोग हैं कि अपना घर एक दिन लुटते हुए देखते रहते हैं और कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। ऐसा ही माहौल इस समय भारतभूमि में चल रहा है। आतंकवाद की जननी पाकिस्तान का आर्थिक और सैन्य ताकत को हमेशा दूध पिलाने वाला चीन जो कि अपने वीटो के पवार पर मसूद अजहर जैसे आतंकी को आतंकी नहीं घोषित होने देता है। अगर प्रत्येक भारतीय चीनी निर्मित सामान का बहिष्कार करें तो आर्थिक रूप से कमजोर भी होगा और उसकी पाकिस्तान को दूध पिलाने की समक्षता भी कमजोर हो जाएगी। हां, आप अगर पहले से चीनी निर्मित सामान उपयोग कर रहे हैं तो करिये, लेकिन आगे से तो ऐसा न करने की ठाने। क्योंकि एक सैनिक की जान से प्यारी हमारी उपभोग की चीजें नहीं हैं। और हां, यह जो चीनी मीडिया बौखलाहट में बोल रहा है यह मातृभूमि का अपमान है ही साथ ही मां का भी अपमान है।

आधुनिकता के दौर में सब अंधे हो जाएंगे

हर गली से आवाज उठेगी
हर बस्ती जलेगी
अपने अपनों में स्वार्थ खोजेंगे
आधुनिकता के दौर में सब अंधे हो जाएंगे
तब देखना मेरे देशवासियों
देश के टुकड़े होते देखे जाएंगे

शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

LIPSTICK UNDER MY BURKHA | Official Teaser Trailer | Konkona Sensharma, ...



लिपिस्टिक अंडर माई बुर्का फिल्म जो बताती है मुस्लिम महिलाओं की दो जिंदगी के बारे में किस तरह से अपनी आजादी को जीती हैं।

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

गुस्सा

एक दिन मेरा दोस्त विशाल जिद करके अपने साथ बीवी से मिलाने ले आया।
विशाल : लो आ गया रेस्टोरेंट
विशेष : ये कहां ले आए मुझे
विशाल : सही जगह, जनाब
विशेष : मुझे तो नहीं लगता
विशाल : अन्दर आओगे तभी तो पता चलेगा
विशेष : ठीक है
विशाल और विशेष दोनों रेस्टोरेंट में प्रवेश करते हैं।
विशाल : तू यही घूम मैं अभी आता हूं
विशेष : लेकिन तुमने कहा था
विशाल : बीच में टोकते हुए हां, मालूम है। पहले घूम तो लो
विशेष : घूमने लगा, घूमते-घूमते एक सीट पर उसकी नजर पड़ी जिस पर एक युवती छरहरी काया की सांवली सी बैठी कुछ पढ़ रही है।
विशाल :  आकांक्षा तुम यहां हो मैं तुम्हे अन्दर ढूंढ रहा हूं। आओ मैं अपने अजीज दोस्त से मिलवाता हूं।
आकांक्षा : कौन
विशाल : आज बहुत दिनों बाद पकड़ में आया है। उसको साथ ही लेकर यहां चला आया हूं
आकांक्षा : कहां है आपके दोस्त। दिख तो रहे नहीं
विशाल : पता नहीं कहां चले गए। यहीं तो थे अभी
आकांक्षा : कोई एक नौजवान फव्वारे की तरफ घूम रहे थे
विशाल : हां वहीं होगा, विशेष तुम यार यहां हो आओ मिलवाते हैं जिनसे मिलवाने लाए थे
विशेष अपने दोस्त के साथ उसके पीछे-पीछे चल पड़ा
अब वो मुझे उसी युवती के पास ले गया जिसे विशेष ने कुछ देर पहले देखा था
आकांक्षा : ये ! अभी तो फव्वारे तरफ घूम रहे थे
विशेष : नमस्ते !
आकांक्षा नमस्ते ! आइये बैठिये
विशाल : ये रेस्टोरेंट जिसे तुम कह रहे थे इन्हीं का है। यहीं रहती है
नौकरानी : दीदी जी, क्या लाए, पहले पानी या फिर चाय
आकांक्षा : चाय ही ले आओ फिर दोपहर का खाना खाकर दोनों लोग जाएंगे
विशाल और आकांक्षा विशेष से बात करने लगे
नौकरानी : दीदी जी ! चाय
आकांक्षा : हां रख दो
नौकरानी : चाय रखकर चली जाती है
आकांक्षा : आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हैं
विशेष : ऐसी कोई बात नहीं
आकांक्षा : तो फिर शांत क्यों हैं
विशाल : ये ऐसे ही पहली दफा शांत रहता है
आकांक्षा : अच्छा
आकांक्षा, विशाल और विशेष बातों में मसगुल रहते हैं कि दोपहर हो जाती है
आकांक्षा : अच्छा चलिये खाना खा लीजिए आप दोनों। अंजू (नौकरानी).......
नौकरानी :  जी दीदी जी !
आकांक्षा : खाना लगा दे
आकांक्षा, विशाल और विवेक खान खा ही रहे होते हैं कि किसी बात को लेकर विशाल और आकांक्षा में तीखी बहस होने लगती है
आकांक्षा : ये कैसा बर्ताव है विशाल
विशाल : तू शांत रह
आकांक्षा : क्यों शांत रहूं। बेवजह चिल्लाए जा रहे हो
विशाल : शांत नहीं तो यहां से चली जा
आकांक्षा : हां ! जा रही हूं और फिर कभी नहीं आऊंगी। देखिये विशेष जी ये अक्सर ऐसा करते हैं। मैं अपनी बाप की दौलत छोड़कर आई किसके लिए और ये हैं कि आए दिन झगड़ते रहते हैं
विशेष : विशाल भाई हुआ क्या
विशाल : कुछ नहीं याद दिमाग खराब है
कुछ देर बाद धड़ाम की आवाज आती है जब तक विशाल और विशेष दौड़कर देखते तब तक आकांक्षा ने छत से कूदकर जान दे दी थी
विशाल : ये मैंने क्या किया कर दिया। जोर-जोर से रोने लगा। गुस्से में मैंने उसे बुरा-भला कहा। एक पल में गुस्से ने आंखों के सामने सब बिखेर दिया था।
विशाल के पास पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं था। एक चश्मदीद गवाह जो केवल बुत बना यह सब देख रहा था वह विशेष कुछ नहीं कर पाया

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

बोतल थी भरी हुई

मैं गुजरा मयखाने के पास से
पिलाने वाला कोई न था
बोतल थी भरी हुई
उसे टटोलने वाला कोई न था

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

मत तरसा अब इनको मेरी बुलबुल

तेरे आँखों की चाँदनी होठों की लिपस्टिक 
गर्दिश में हैं तेरे चाहने वाले 
मत तरसा अब इनको मेरी बुलबुल
खोल दो दिल के केवांडे

रविवार, 9 अक्तूबर 2016

डूबने को चन्द्रमा अपनी चरम पर है



रात में बैठा मुसाफिर सुन रहा था कुछ
की आहट कौन सी उजाले की आई है
वो चुपचाप बैठा देख रहा था दब
की रात ढलने को उस ओर देख रहा हूँ मैं
की मेरा बचपन भी शामों की हुड़दंगियों में बीता था
जो आज मैं बैठा देख रहा हूँ यह सब
बेबस हूँ क़ि कुछ कर नहीं सकता हूँ मैं
की एक उजाले की आस में जवानी डूब जाएगी
डूबने को चन्द्रमा अपनी चरम पर है
किनारे पर जाके कब से मुस्कुरा रहा है वो
फिर उजाले की सुनहरी सुबह आई है
बेबस बैठकर सबकुछ देख रहा हूँ मैं।


शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

हम अपने हाथों मेँ खंजर नहीं रखते

कश्तियों को साहिल से लड़ने मेँ मजा आता है
हमको ज़िन्दगी से जीतने मेँ मजा आता है
दिन रात हमारे दुश्मन हमे मात देने की सोचते रहते हैँ
उनकी इस बेचैनी से हमे हौसला आता है
हम अपने हाथों मेँ खंजर नहीं रखते
मगर वो हैँ अपने दिल मेँ खंजर चुभने की जगह रखते हैँ
ज़िन्दगी मेँ मिलने से वास्ता बस इतना सा है
हम जैसे ज़िन्दगी के सफर मेँ मिलते तो हैँ

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

दर्द का अपना समंदर भर गया

दर्द का अपना समंदर भर गया
अपना दर्द हमें दे गया कोई
रोते हुए हम आज अपने घर से निकले
जाने कब लौटेंगे कदम मेरे
रोटी की चाह ने अपनों से दूर कर दिया
जिन्हें मंजिल समझ हम मुसफिर बने
जाने कहां कब मिलेगा वह
यहीं सोचकर मुसफिर बढ़ता रहा...

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही

जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही
पर तोड़ने का हौसला तो लाओ
दिनों-दिन अपना विस्तार वो जो करते हैं
मिट जाने का अहसास वो भी करते हैं
छुप-छुपकर वार वो करते जो करते हैं
खुलकर विरोध न करने का इजहार वो करते हैं
थक हारकर आते हैं वो मेरे दर पर
समझौता करने का प्रस्ताव वो रखते हैं
जिंदगी के पांव में लाख बेड़ियां सही
पर तोड़ने का हौसला तो लाओ

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

तू शीशमहल में खुश हो के तन्हा है

मेरे आंसू रुक नहीं सकते थे क्या हुआ
तू रुक सकता था तो क्यों नहीं हुआ
मैं यहाँ तन्हा जी के खुश हूँ 
तू शीशमहल में खुश हो के तन्हा है
मैं तो घर से चला था तेरे साथ चलने को
जब बीच राह में तुमने मेरा दामन छोड़ा
आज मैं तन्हा हो के भी खुश हूँ
और तू खुश हो के तन्हा है।

शपथ है उन टूटती चूड़ियों की आवाजों की

शपथ है मां की उन कोखों की, जिन्होंने वीरों को जन्म दिया
शपथ है उन आंसुओं की
शपथ है उन मेहंदी वाले हाथों की
शपथ है उन टूटती चूड़ियों की आवाजों की
शपथ है उन बच्चों की
शपथ है उन पिता की, जिन्होंने बूढ़ापे की लाठी खोई
शपथ है उस बहन की राखी की
शपथ है उन वीरों की शहादत की
शपथ लेता हूं मैं
भविष्य में चाइना के सामानों का उपभोग नहीं करूंगा
#जय #हिन्द जय #भारत

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

हमने तो गिरकर, उठकर चलना सीखा है

मन मेँ धीरज है
तन मेरा शिथिल है
अब पूछों ऐसा क्यों है
पग उसके भी डगमागायेंगे
अब उसको भी गिरना है
हमने तो गिरकर, उठकर चलना सीखा है
उनके तौर तरीकों को हथियाना सीखा है
उनको गुरूर था न गिरने का
उनको अब मैं गिरता देखूँगा
पता नहीं गिरकर वह चल भी पायेंगे
या फिर अपना गुरूर लिये खुद ही मार जायेंगे

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

कोई खामोश कोई बोला जा रहा

कोई #खामोश कोई बोला जा रहा 
वक्त भी हमसे निकला जा रहा 
बैठ कर कुछ पल सोचते हैँ 
हर #रोज की तरह #इंसान निकला जा रहा

गुरुवार, 22 सितंबर 2016

कुछ दूर तेरे साथ चलके यकीं कैसे कर लूं

कुछ दूर चलके तेरे साथ
यकीं कैसे कर लूं
एक लम्बे इंतजार की घड़ी को
बेसब्र की घड़ी क्यों कर लूं
एक छोटे से सफर में
मैं तुम पर यकीं कैसे कर लूं
हाथ पकड़कर यकीं तुमने दिलाया
साथ चलके हौसला तो दिखाया
पर, इस हौसले को यकीं में कैसे बदल लूं
सफर है तो मोड़ भी है
मैं हर मोड़ पर यकीं कैसे कर लूं
कुछ दूर तेरे साथ चलके यकीं कैसे कर लूं

दीप जलाए जायेंगे

कुछ पल का उबाल
कुछ पल का हाहाकार
फिर हम एक धुन में होंगे
आगे बढेंगे फिर बढेंगे
मालायें पहनाई जायेंगी
दीप जलाए जायेंगे
मेरी शहादत पर
फिर से सियासत का रंग चढ़ाया जाएगा
कुछ अपने ही कर्ता धर्ता
लानत मानत देंगे
फिर सुखभोगी की तरह
सत्ता सुख में खो जायेंगे
जयहिन्द

बुधवार, 14 सितंबर 2016

रविवार, 11 सितंबर 2016

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

जब भी निकलोगे

तकिये पर तुम सिर रखो
या सिरहाने किताब
जब भी निकलोगे
लोग पूछेंगे तुम्हारा हाल
लुटते-पिटते कैसे भी चलते हो
पर रहना बिल्कुल बिन्दास
चीखें और गुफ्तगू कानों को खटखटाएंगी
मसलन तुम्हे पीछे खींचना चाहेंगी
आंखें तक ताक-झांक करना चाहेंगी
पैर ठिठककर रुक जाएंगे
पर तुम निकल जाना इस दुनिया के पार
फिर तुमसे नहीं पूछा जाएगा तुम्हारा हाल

बुधवार, 7 सितंबर 2016

इशारा

जरा खिसकिये हमे बैठना है। मै खिसका ही था कि उधर से खिसको सामने एक नौजवान चिल्लाकर बोल रहे थे। हमने भी कहा, आप ही इधर बैठ जाइये। फिर वो कुछ बुदबुदाये और आकर बैठ गए। मै उठकर अगली सीट पर चला गया। क्योंकि, हमारा स्टेशन आने वाला था। इसी बीच दोस्त का फोन आ गया और हमारी बात होने लगी उसने कुछ कहा तो हमारे मुंह से निकल गया कि हिटलर ने लिखा है कि किसी भी मुनष्य को आप इसी धरती पर स्वर्ग और नर्क का एहसास करा सकते हो। हमारा ये  इशारा वो महिला समझ गई। इतने में आवाज आई बिकू और हमारे दोस्त खड़े थे उतरते ही एक-दूसरे से गले मिले। अचानक सर पर नजर पड़ी सर आप! हमने भी सोचा विवेक तुम से मिल ही लेते हैं। तुम जब भी आते हो मिल के जाते हो तो इस बार हम भी मिल लेते हैं। हमने सर को प्रणाम कि और चलने ही वाला था कि एक बार फिर से उस महिला की ओर देखा तो जैसे लगा वो कुछ कहना चाह रही है। शायद अपने अफसर के बर्ताव पर माफी मांगना चाह रही है, लेकिन ट्रेन चल चुकी थी और वो हमारा इशारा समझ गई थी।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

#वक्त की आहट समझ लेना #तुम

तेरा दर्द जब आंसू के रास्ते से निकले
गुजरे हुए जमाने यादों से निकले
वक्त की आहट समझ लेना तुम
भीगते सावन में जब कोई किसी के पास से निकले।

रविवार, 17 जुलाई 2016

कश्मीरियों को ही तय करना है उन्हें क्या चाहिए



जरा सोचिये, कश्मीरी जिन सैलानियों को मार रहे हैं अगर वो उनके प्रदेश में न जाएं तो क्या होगा। उनको मिलने वाला पैसा जो एक रोजगार की तरह उन्हें मिल जा रहा है कहां से जाएंगे। अब खुद ही कश्मीरवासियों को तय करना है कि वे लोग कश्मीर में क्या चाहते हैं भुखमरी, मासूम बच्चों को शिक्षा, एक युवा को रोजगार और भी कई अन्य सुविधाएं। अब खुद ही इन्हें तय करना है। आतंकवाद खत्म तो कश्मीरवासियों को ही करना है। अगर ये लोग ऐसे ही यह सब जिहाद के नाम पर करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब एक सैलानी नहीं जाएंगे और पैसे का जो एक बड़ा जरिया है वह भी स्त्रोत है बंद हो जाएगा।
हां उन्हें वे सारी जरूरत की चीजें मिलेंगी जिसकी उन्हें जरूरत है, लेकिन इसके लिए कश्मीरवासियों को भारत सरकार का सहयोग करना होगा।बिना इसके सब संभव भी नहीं। आतंकवाद के नाम पर अगर पर जिहाद करना चाहते धर्म के नाम पर लोगों को बरगलाना चाहते हैं तो आपको कोई रोकेगा भी नहीं, क्योंकि आप पहले ही तय कर चुके हैं तो दूसरों की बातें मायने नहीं रखती। हां, बस एक बार अपने बच्चे, बीबी और परिवार की आंखों में देखिएगा और फिर निर्णय लीजिए की जो आप कर रहे हैं उससे आपके परिवार खुद को खुश पाते हैं अगर हां तो आप जरूर करिये, लेकिन इसका जवाब अगर न में है तो उन लोगों की बरगलावे में न आएं जो आपको धर्म और जिहाद के नाम पर आपको और आके बच्चों को भड़का रहे हैं। बस, अब आपको निर्णय करना है।


बुधवार, 13 जुलाई 2016

ऐ #जिंदगी तू बता दे

है क्या चीज तू
ऐ जिंदगी तू बता दे
कुछ पल साथ चलकर कुछ सिखा दे
राह से भटका मुसफिर हूं
राह पर मुझको लौटा दे
आ के मेरे जख्मों पर
दर्द का मलहम लगा दे
टूट गए जो तेरे सफर में
ऐ जिंदगी उनमें उम्मीद जगा दे
जब थक जाऊं तेरे सफर में
ऐ जिंदगी मुस्कुराकर मुझे सुला देना 

तेरी #याद ने

तेरी याद ने
       मुझे उस खूंटी तक खींच लाई
जहां वर्षों पहले हमने झोला टांगा था
       झोला उठाके हमने
उसमें से वो किताब निकाली
      जिसमें तुमने गुलाब दबाकर दिया था
गुलाब देखकर
     अन्तस मन से एक ही आवाज निकली
जहां भी रहो बस मुस्कुराती रहे

#मुर्दा जब बोल पड़ा

मृत्यु शय्या पर लेटा
 मुर्दा जब बोल पड़ा
तब समाज नाम की आंखों में
शर्म नाम की चीज दिखी
कुछ घंटों पहले जब उसको
 निर्वस्त्र कर नहलाया जा रहा था
हर उम्रदराज प्रत्यक्षदर्शी बन देख रहे थे
 जब प्रत्यक्ष ही मुर्दा बोल पड़ा
तब समाज की सारी कुंठाएं जीवित हो उठीं
मुर्दा जब समाज में अपने को पाया
फिर समाज की कुंठाओं में
 खुद को घिरता पाया
रोज ही वो अब इस समाज में
रेला पेला जाता है
फिर से ही वो खुद को
 मृत्यु शय्या पर पाता है


रविवार, 10 जुलाई 2016

जब #बेटी बोझिल सी लगने लगे

जब बेटी बोझिल सी लगने लगे
जब बेटी से युवती बनने लगे
देखो समाज कैसे तंस कसता
आंखे फाड़-फांड़कर देखता
जब बेटी को खुद को सुरक्षित न पाती
तब समाज कलंकिनी कलमुही कहता
देखो समाज कैसे तंज कसता
ये समाज की देन है
बेटी खुद को कैसे करती
सिस-सिसकर खूब रोती
अपना दर्द खुद ही पी जाती
फिर भी एक मां बनकर
एक समाज को जन्म दे जाती
जब बेटी बोझिल सी लगने लगे

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

हम सहज ही सबकुछ #भूल जाना चाहते थे

हम हैं तो तुम हो
तुम हो तो हम हैं
हम नहीं तो हमारी यादें हैं
तुम नहीं तो तुम्हारी यादें हैं
उस दिन तुमने क्या कहा था
जब हम चाय की चुस्कियां ले रहे थे
तुम्हारा आना हमारे लिए इत्तेफाक रहा
कभी किसी की बात पर अनायास हंसी निकल आती
तो कभी किसी की खिल्ली उड़ाई जाती
पर, सच में सबकी बातें निश्च्छल थीं
हम सब के हाथों में चाय की प्याली थी
और दिल में एक मीठी प्यास
बातें लम्बी थीं
इसीलिए बातों में वक्त का ठहराव था
हंसी दिन गुजर रहे थे
रोज कुछ नए दोस्त मिल रहे थे
पुराने भी बहुत याद आ रहे थे
गुजर दिन कुछ याद दिला रहे थे
आने वाले दिन कुछ सपने दिखा रहे थे
पता नहीं सपना था या स्वप्न
हम सहज ही सबकुछ भूल जाना चाहते थे
जैसे रेत पर बने पदचिह्न
जिसे लहर अपने में समा लेती है

गुरुवार, 30 जून 2016

कुछ ऐसी प्यारी मेरी #मां

तन मेरा कपड़ा ओढ़े
मन उसका हरसाए
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
भूखी रहकर मुझे खिलाये
खुद भूखी सो जाए
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
क्षमा शब्द है मेरी मां
सागर में करुणा जैसी मेरी मां
तूफानों में कश्ती जैसी लड़ती मेरी मां
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
मौसम में बरखा है मेरी मां
ऋतुओं में वसंत ऋतु है मेरी मां
त्योहारों में ईद, दीवाली, वैसाखी है मेरी मां
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
मेरी प्रथम शिवाला है मेरी मां
मेरे मन की अभिलाषा है मेरी मां
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
मेरा बचपन मेरी मां
मेरा यौवन मेरी मां
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां
मेरी आंखे मेरी मां
मेरी सांसें मेरी मां
कुछ ऐसी प्यारी मेरी मां

बुधवार, 29 जून 2016

#दुर्योधन अट्टहांस कर #हंस रहा


एक कदम तू चल, एक कदम मैं चलूं हौसला तू भी रख, मै भी रखूं दुनिया में वक्त किसके पास है सबको जल्दी है एक-दूसरे की रोटी छीनने की पड़ी है सियासत के नाम पर सांप्रदायिक दंगे कराए जा रहे जो कल तक चिल्लाते थे एकता और राष्ट्रीयता आज वही हम लोगों में फूट डाल रहे हैं धर्म के नाम पर लोग बांटे जा रहे सियासत का सुख पाने को बाप किसी पार्टी में और बेटा किसी पार्टी में सांतवा वेतन आयोग लग गया और आमजनता आज भी दो रोटी के लिए शोषण का शिकार हो रही लोगों की नजरों में सिर्फ पैसा मायने रखने लगा अब घरों के आंगन में दीवाचलरें खड़ी होने लगी अब हर शहर हस्तिनापुर बनने की तट आ पहुंचा दुर्योधन अट्टहांस कर हंस रहा शकुनि मामा अपना पांसा फेंक रहा अब हर शहर कुरुक्षेत्र बनने की तट पर आ खड़ा हुआ पता नहीं अपना शहर क्या सपने देख रहा पता नहीं अपना शहर क्या सपने देख रहा


मंगलवार, 28 जून 2016

#ईश्वर को देखा नहीं हमने

मैं हूं कुछ नहीं
आप की तरह मुसाफिर हूं
आज यहां तो कल और कहीं ठिकाना है
पर जब भी मिलता हूं आप से
चेहरे पर मुस्कान खींच आती है
 पता नहीं ये क्यों होता है
हो सकता है हम और आप हर जनम में मिल रहे हों
जनम के साथ हम लोगों के मुखौटे बदल गए हों
पता नहीं क्यों आपकी आवाज सुनकर ऐसा लगता है जैसे
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे से आवाज आई है
ईश्वर को देखा नहीं हमने
जब आपको देखता हूं, ईश्वर दिख जाता है
सूरज की किरणों के जैसे
आपकी मुख की लालिमा है
आपको सूरज समझकर प्रणाम करता हूं
आप जहां भी रहेंगे वहां की फिजा रोशन रहेगी
अंत में अपने घुटनों के बल बैठ गया
और आपको स्मरण कर विदा लेता हूं
ईश्वर! ईश्वर!